Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 05
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 378
________________ श्रीजीवाजीवाभिगम-सूत्रम् / अ० 1 प्रतिपत्तिः 3 ] [.363 सूरस्स य सूरा चंदस्स अंतरं होइ। पन्नास सहस्साइं तु जोयणाणं श्रणूणाई // 27 // सूरस्स य सूरस्स य ससिणो ससिणो या अंतरं होइ / बहियारो मणुस्सनगस्स जोयणाणं सयसहस्सं // 28 // सूरंतरिया चंदा चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता। चित्तंतरलेसागा सुहलेसा मंदलेसा य // 21 // अट्ठासीइंच गहा अट्ठावीसं च होंति नक्खत्ता। एगससीपरिवारो एत्तो ताराण वोच्छामि // 30 // छावट्ठिसहस्साई नव चेव सयाई पंचसयराई / एगससीपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं // 31 // बहियारो माणुसनगस्स * चंदसूराणऽवट्ठिया जोगा (तेया) / चंदा अभीइजुत्ता सूरा पुण होति पुस्सेहिं // 32 // 3 // सू० 177 // माणुसुत्तरे णं भंते ! पवते केवतियं उड्ड उच्चत्तेगां ? केवतियं उब्वेहेगां ? केवतियं मूले विवखंभेणं ? केवतियं मज्भे विवखंभेगां ? केवतियं सिहरे विखंभेणं ? केवतियं अंतो गिरिपरिरएगा ? केवतियं बाहिं गिरिपरिरएगां ? केवतियं मज्झे गिरिपरिरएगां? केवतियं उवरि गिरिपरिरएगां ?, गोयमा ! माणुसुत्तरे णं पवते सत्तरस एकवीसाइं जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेगां चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणां मूले दसबावीसे जोयणसते विक्खंभेगां मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसते विक्खंभेगां उवरि चत्तारिचउवीसे जोयणसते विक्खंभेणं अंतो गिरिपरिरएगां-एगा जोयणकोडी. बायालीसं च सयसहस्साइं 1 / तीसं च सहस्साई दोगिण य श्रउणापरणे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, बाहिरगिरिपरिरएगां एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं छत्तीसं च सहस्साई सत्तचोदसोत्तरे जोयणसते परिक्खेवेगां, मज्झे गिरिपरिरएगां एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साई चोत्तीसं च सहस्सा अट्टतेवीसे जोयणसते परिक्खेवेगां, उवरि गिरिपरिरएगां एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साई बत्तीसं च सहस्साई नव य बत्तीसे जोयणसते परिक्खेवेगां, मूले विच्छिन्ने मज्झे

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