Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 05
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 392
________________ श्रीजीवाजीवाभिगम-मूत्रम् :: अधिकारः 1 तृतीया प्रतिपत्तिः ] [ 377 वरावभासमहावरा य एत्थ जाव परिवसंति सेसं तहेव 23 / एवं सब्वेवि तिपडोयारा तव्वा जाव सूरवरोभासोए समुद्दे, दीवेसु भहनामा वरनामा होंति उदसीसु जाव पच्छिमभावं व खोतवरादीसु सयंभूरमणपज्जतेसु वावीत्रों खोयोदगपडिहस्थाश्रो प्रध्वयका य सव्ववइरामया 24 / देवदीवे दीवे दो देवा महिड्डीया जाव परिवसंति सेसं तहेव 25 / देवभहदेवमहाभद्दा एत्थ जाव परिवसंति सेसं तहेव 26 / देवोदे समुद्दे देववरदेवमहावरा एत्थ जाव परिवसंति सेसं तहेव जाव सयंभूरमणे दीवे सयंभूरमगाभद-सयंभूरमणमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डीया जाव परिवसंति सेसं तहेव 27 / सयंभुरमणगणं दीवं सयंभुरमणोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंगणसंठित्ते जाव असंखेन्जाई जोयणसतसहस्साई परिक्खेवेणं जाव अट्ठो, गोयमा ! सयंभुरमणोदए उदए अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवराणाभे पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते, सयंभुरमणवर-सयंभुरमणमहावरा य इत्थ दो देवा महिड्डीया जाव परिवसंति, सेसं तहेव जाव असंखेज्जायो तारागणकोडिकोडीयो सोभेसु वा 3, (देवे नागे जक्खे भूए य सयंभूरमणे अ एक्के भाणियन्वो) (देवादयोऽन्त्या एकोकारा) (देवे नागे जक्खे भूए य सयंभूरमणे एतेन्तिमा पञ्च एक्केका पडिपत्तव्वा ) 28 // सू. 185 // केवइया णं भंते ! जंबुद्दीवा दीवा णामधेज्जेहिं पराणत्ता ?, गोयमा ! असंखेजा जंबुद्दीवा 2 नामधेज्जेहिं पराणत्ता, केवतिया णं भंते ! लवणसमुद्दा 2 पराणत्ता ?, गोयमा ! असंखेजा लवणसमुद्दा नामधेज्जेहिं पराणत्ता, एवं धायतिसंडावि, एवं जाव असंखेजा सूरदीवा नामधेज्जेहि य 1 / एगे देवे दीवे पराणत्ते एगे देवोदे समुद्दे पराणत्ते, एवं णागे जक्खे भूते जाव एगे सयंभूरमणे दीवे एगे सयंभूरमणसमुद्दे णामधेज्जेणं पण्णत्ते 2 // सू० 186 // लवणस्स णं भंते ! समुदस्स उदए केरिसए. अस्साएणं पराणत्ते ?, गोयमा ! लवणस्स उदए श्राइले रइले लिंदे लवणे कडुए अपेज्जे बहूणं दुपय-चउप्पय-मिग

Loading...

Page Navigation
1 ... 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456