Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 05
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ श्रीजीवा जीवाभिगम-सूत्रम् / अधिकारः 1 पञ्चमी प्रतिपत्तिः ] / 403 पराणत्ता, तंजहा-सुहुमपुढविकाइया य बादरपुढविकाइया य, सुहुमपुढवि काइया दुविहा पराणचा, तंजहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य, एवं बायरपुढविकाइयावि 2 / एवं चउक्कएणं भेएणं श्राउ-तेउ-बाउ-वणस्सतिकाइया णेयव्वा 3 / से किं तं तसकाइया ?, 2 दुविहा पराणत्ता, तंजहापजत्तगा य अपजत्तगा य 4 // सू० 226 // पुढविकाइयस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पराणत्ता ?, गोयमा ! जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं बावीसं वाससहस्साई, एवं सव्वेसि. ठिती णेयवा, तसकाइयस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं, अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं जहन्नेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पजत्तगाणं सव्वेसिं उकोसिया ठिती अंतोमुहुतऊणा कायव्वा // सू० 227 // पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइयत्तिकालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं जाव असंखेज्जा लोया 1 / एवं जाव ग्राउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं अणंतं कालं जाव श्रावलियाए असंखेजतिभागो 2 / तसकाइए णं भंते ! तसकायत्तिकालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोस्सेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमब्भहियाई 3 / अपजत्तगाणं छराहवि जहराणेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पज्जतगाणं-वाससहस्सा संखा पुढविदगाणिलतरूण पजत्ता / तेऊ राइदिसंखा तससागरसतपुहुत्ताई // 1 // पजत्तगाणवि सम्वेसि एवं 4 / पुढविकाइयस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होति ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं वणप्फतिकालो 5 / एवं पाउतेउवाउकाइयाणं वणस्सइकालो, तसकाइयाणवि, वणस्सइकाइयस्म पुदिविकाइयकालो 6 / एवं अपज्जत्तगाणवि वणस्सइकालो, वणस्सईणं पुढविकालो, पजत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो, पजत्तवणस्सईणं पुढविकालो 7 // सू० 228 // अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा तसकाइया तेउकाइया असंखेजगुणा पुढविकाइया

Page Navigation
1 ... 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456