Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 05
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 438
________________ श्रीजीवाजीवाभिगम-सूत्रम् :: अ० 2 तृतीया प्रतिपत्तिः ] [:423 श्रणाइया सपजवसिया भवसिद्धिया, अणाझ्या अपजवसिया अभवसिद्धिया, साई अपज्जवसिया नोभवसिद्धिया नोभवसिद्धिया 2 / तिराहपि नस्थि अंतरं 3 / अप्पाबहुगं सव्वत्थोवा अभवसिद्धिया णोभवसिद्धीया-नोअभवसिद्धिया अनतगुणा भवसिद्धिया अणंतगुणा 4 // सू० 255 / / अहवा तिविहा सबजीवा पराणत्ता, तंजहा-तसा थावरा नोतसानोथावरा 1 / तसस्स णं भंते ! कालो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहरणेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं साइरेगाई 2 / थावरस्स संचिट्ठणा वणस्सतिकालो, णोतसानोथावरा साती अपज्जवसिया 3 / तसस्स अंतरं वणस्सतिकालो, थावरस्स अंतरं दो सागरोवमसहस्साई साइरेगाई (तसकालो), णोतसणोथावरस्स णत्थि अंतरं 4 / श्रप्पाबहुगं सव्वस्थोवा तसा नोतसानोथावरा अणंतगुणा थावरा अणंतगुणा 5 / से तं तिविधा सव्वजीवा 6 // सू० 256 // // इति द्वितीया प्रतिपत्तिः // 2-2 // // अथ चतुर्विधाख्या तृतीया प्रतिपत्तिः // तत्थणं जे ते एवमाहंसु-चउब्विहा सव्वजीवा पराणता ते एवमाहंसु तंजहा-मणजोगी वइजोगी कायजोगी अजोगी / / मणजोगी णं भंते ! जहरणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं, एवं वइजोगीवि, कायजोगी जहराणेण अंतोमुहुत्तं उकोसेणं वणसतिकालो. अजोगी सातीए अपजवसिए 2 / मणजोगिस्स अंतरं जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं वइजोगिस्सवि, कायजोगिस्स जहराणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं, अयोगिस्स पत्थि अंतरं 3 / अप्पाबहुगं सव्वत्थोवा मणजोगी वइजोगी संखिजगुणा अजोगा अणंतगुणा कायजोगी अणंतगुणा 4 // सू० 257 // हवा चउन्विहा सबजीवा पराणत्ता, तंजहा-इत्थिवेयगा

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