Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 05
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 415
________________ / श्रीमदांगमसुधासिन्धुः / पञ्चमो विभागो जा चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा, तिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तो उक्कोसेणं वणस्सतिकालो 2 / मणुस्से णं भंते ! मणुस्सेति कालतो केवचिरं होति ?, गोयमा ! जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं तिन्नि पलिश्रोवमाई पुवकोडिपुहुत्तमन्भहियाई 3 / णेइरयमणुस्सदेवाणं अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्पतिकालो 4 / तिरिक्खजोणियस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवम-सयपुहुत्तसाइरेगं 5 ॥सू० 222 // एतेसि णं भंते ! गेरइयाणं जाव देवाण य कयरे२हिंतो अप्पा वा 4 ?, गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा णेरइया असंखेजगुणा देवा असंखेजगुणा तिरिया अणंतगुणा, से तं चउबिहा संसारममावराणगा जीवा पराणत्ता // सू० 223 // चउविह पडिवत्ती॥ // इति तृतीयप्रतिपत्तौ वैमानिकाधिकारे द्वितीय उद्देशकः // 4-3-2 // // अथ पञ्चविधजीवाख्या चतुर्था प्रतिपत्तिः // तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-पंचविहा संसारसमावराणगा जीवा पराणत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा-एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चरिंदिया पंचिंदिया 1 / से किं तं एगिदिया ?, 2 दुविहा पराणत्ता, तंजहा-पजत्तगा य. अपज्जत्तगा य, एवं जाव पंचिंदिया दुविहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य 2 / एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पराणता ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं बावीसं वाससहस्साई, बेइंदियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं बारस संवच्छराणि, एवं तेइंदियस्स एगूणपराणं राइंदियाणं, चउरिदियस्स छम्मासा, पंचेंदियस्स जहराणेणं अंतोमुहुत्तं, उकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई 3 / अपजत्तएगिदियस्स णं केवतियं कालं ठिती पराणत्ता ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणवि अंतोमुहुत्तं एवं सव्वेसि 4 / पजत्तेगिदियाणं णं जाव पंचिंदियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं

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