Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 05
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 414
________________ . . . श्रीजीवानीवाभिगम-सूत्रम् :: अ० 1 तृतीया प्रतिपत्तिः ) [ 399 पगतित्था विभूसाए पराणत्ता 1 / सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवीश्रो केरिसियाश्रो विभूसाए पराणत्तायो ?, गोयमा ! दुविधायो पराणत्तायो, तंजहा-वेउब्वियसरीरायो य अवेउब्वियसरीरायो य, तत्थ णं जात्रो वेउवियसरीरायो, ताओ सुवराणसद्दालायो सुवरणसदालाई वत्थाई पवर परिहितायो चंदाणणायो चंदविलासिणीयो चंदद्धसमणिडालाश्रो सिंगारागारचारवेसायो संगय जाव पासातीयायो जाव पडिरूवा, तत्थ णं जाओ अवेउब्बियसरीरायो तायो णं ग्राभरणवसणरहियायो पगतित्थायो विभूसाए पराणत्तायो, सेसेसु देवा देवीयो णस्थि जाव अच्चुत्रो, गेवेजगदेवा केरिसया विभूसाए पराणत्ता ?, गोयमा ! श्राभरणवसणरहिया, एवं देवी णत्थि भाणियब्वं, पगतित्था विभूसाए पराणत्ता, एवं अणुत्तरावि 2 // सू० 218 // सोहम्मीसाणेसु देवा केरिसए कामभोगे पचगुंभवमाणा विहरंति ?, गोयमा ! इट्टा सदा इट्टा रूवा जाव फासा, एवं जाव गेवेजा, अणुत्तरोववातियाणं अणुत्तरा सदा जाव अणुत्तरा फासा // सू० 211 // ठिती सव्वेसि भाणियव्वा, देवित्तावि, अणंतरं चयंति चइत्ता जे जहिं गच्छति तं भाणियव्वं // सू० 220 // सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु सव्वपाणा सव्वभूया जाव सत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सतिकाइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए पासणसयण जाव भंडोवगरणत्ताए उववरणपुव्वा ?, हंता गोयमा ! असई श्रदुवा अणतखुत्तो, सेसेसु कप्पेसु एवं चेत्र, णवरि नो चेव णं देवित्ताए जाव गेवेजगा, अणुत्तराववातिएसुवि एवं, णो चेव ‘णं देवत्ताए देवित्ताए य। सेत्तं देवा // सू० 221 // नेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पराणत्ता ?, गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, एवं सम्वेसिं पुच्छा, तिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिश्रोवमाई, एवं मणुस्साणवि, देवाणं जहा णेरतियाणं 1 / देवणेरइयाणं

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