Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar
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अध्ययन ३२. प्रमाद-स्थान. २६७/अञ्चंतकालरस समूलयरस सव्वस्स दुख्खस्सउ जो पमोख्खो । तं भासओ मे पडिपुन्न चित्ता सुणेहए गंत हियं ।
हियथ्थं ॥ १॥ नाणस्स सव्वस्स पगासणाए अन्नाण मोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्सय संखएणं एगंत सोख्खं समुवेइमोख्खं ॥ २ ॥ तस्से समग्गो गुरु विहसेवा विवज्जणा बालजणस्सदूरा । सझाय एगंत निसेवणाए सुत्तथ्थ । संचिंतणया धिईय ॥३॥ आहार मिले मियमेसणिज्ज सहाय मिळे निउणठ्ठ बुद्धिं । निकेय मिळेज विवेग जोगं समाहि कामे समणे तवस्सी ॥ ४ ॥ न बालभेज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समंवा । एकोवि पावाई विवज्जयंतो विहरेज कामेसु असज्जमाणो ॥ ५॥
® अध्ययन ३२. * ___ अनादी कालनी अविरतिरुप सर्व दुःखमय संसारथी मुक्त थवाने तमने जे कहेवामां आवे छे ते एकाग्र चित्तथी श्रवण करो. [१]. ज्ञाननो प्रकाश करवाथी, अज्ञान अने मोह वर्जवाथी, अने राग-द्वेषनो क्षय करवाथी एकांत निरावाध सुख मोक्ष पामे. [२]. गुरु अने वडानी सेवा करवी, मूर्ख जनथी सदा दूर रहे, एकांतमा अध्ययन करवू अने सूत्रार्थनें एकाग्र वृत्तिथी चिंत्वन करवूए मोक्षनो मार्ग छे. (३). [ ज्ञानादिकनी ] समाधिने* इच्छनार अने तपनो करनार श्रमण (साधु) दोषरहित कल्पतो आहार, निपुण, बुद्धिशाली शिष्य अने एकांतवासने योग्य [स्त्री, पशु पंडक रहित ] उपाश्रयने इच्छे छे. [४]. पोताथी गुणमां अधिक अथवा सरखो एवो निपुण शिष्य कदाच न मळे तो पाप कर्मथी अने काम भोगथी। दूर रहीने तेणे एकला रहे.(५).
* Who longs for righteousness, ? Not devoted to pleasures.
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