Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar
View full book text
________________
उ. अ.
३६
३४१
मंता जोगं काउं भूई कम्मं च जे पउंजंति । साय रंस इढि हेउं अभिओगं भावणं कुणइ ॥ २६७॥ नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघ साहूणं । माई अवाई किव्विासयं भावणं कुणइ || २६८ || अणुबद्ध रोस पसरो तह निमित्तमि होइ पाडवी । एएहिं कारणे हिं आसुरियं भावणं कुणइ ॥ २६९ ॥ सध्यग्गहणं विसभख्खणं च जलणं च जलपवेसीथ । अणायार भंड सेवी जम्मण मरणाणि बंधति ॥ २७० ॥ इइ पाउ करे बुद्धे नायए परिनिव्वुए । छत्तीसं उत्तरझाए भवसिद्धिय सम्मएत्तिबेमि || २७१ । जीवाजीव विभत्तिझयणं सम्मतं ॥ ३६ ॥
•
ओ मंत्र प्रयोग करे छे अने पोतानां सुख, आनंद अने प्राप्तिने अर्थे शरीरे राख वगेरे चोळे छे ते अभियोग्य भावना भावे छे. [२६७]. जे मूर्ख जीवो ज्ञाननी, केवलानी, धर्माचार्यनी, संघनी अने साधुनी अशातना (निंदा) करे छे ते किल्विष भावना भावे छे. [२६८ ]. जेओ हमेशां क्रोध करे छे अने जेओ शुभाशुभ भविष्य भाखे छे ते आसुरी भावना भावे छे. [२६९ ]. जेओ आत्म वध करवाने, शस्त्र वापरे छे, विषपान करे हे, जळ अथवा अग्निमां प्रवेश करे छे अने अनाचार आदरे छे, तेओ जन्म-मरणना छे, अर्थात अनंता भव वांधे छे. (अने मोह भावना भावे छे). [२७०]. ज्ञाता अने निर्वाण पहोंचेला श्री महाविर भगवान उपर प्रमाणे श्री उत्तराध्ययन सूत्रना छत्रीस अध्ययन प्रकट की छे जे श्रवण करवाथी भव्य जीव भवसिद्धिने पामे छे. [२७१] .*
आ प्रमाणे सुधर्मा स्वामी जंबु स्वामीने कहे छे.
* प्रो. जेकेोवी कृत भाषान्तरमां २६७ गाथा छे. सूत्रमां २७२ गाथा छे, पण कोइ स्थळे अनुक्रम आपवामां सरत चूक थली छे तेथी कुल गाथा २७१ थाय छे.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jareibrary.org

Page Navigation
1 ... 345 346 347 348 349 350 351 352