Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

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Page 326
________________ उ. अ. ३६ ३२० कंदेय कंदलीय कुहुव्व ॥ ९८ ॥ लोहिणी हूयश्री हूयतुहगाय तहेवय | कन्हेय वज्जकंदेय कंदे सूरणए तहा ॥९९॥ अस्सकन्नीय बोधव्वा सीहकन्नी तहेवय । मुसंढीय हलिद्दाय णेगहा एवमायओ ॥ १०० ॥ एगविह मना हुमा तथ्य वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगंमि लोगदेसेय बायरा ॥ १०१ ॥ संतई पप्प णाईया अपज्जवसियाविय । ठिईपडुच्च साईया सपज्जबसियात्रिय ॥१०२॥ दस चेत्र सहस्साइं वासाणु क्कोसिया भवे । वणरसईण आरंतु अं| मुहुत्तं जहन्निया ॥ १०३ ॥ अनंतकाल मुक्कोसा अंतोमुहुत्तं जहन्निया । कायाठई पणगाणं तंकायंतु अमुंचओ ॥१०४॥ असंखकाल मुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सर काए पणग जीवाणं अंतरं ॥ १०५ ॥ एएसिं वन्नओ चैव गंधओ रस फासओ । संठाणा देसओवावि विहाणाई सहस्ससो ॥१०६ ॥ सिरिली, सिस्तिरिली, जावइ, कन्दली, डुंगली, लसण, कदली, लोहिनी, हुयत्थी, हुय, तुहरु, कृष्ण कन्द, वज्ञ कन्द, सूरण, अश्वकर्णी, सिहकर्णी, मुसंढी कन्द, हळदर, अने एवी कन्द मूळनी अनेक जातो छ. [ ९७-१००] सूक्ष्म वनस्पति जीवनो एक प्रकार छे. तेना जुदा जुदा भेद नथी. सूक्ष्म वनस्पति जीव आखा लोकने विषे व्याप्त छे, परंतु बादर वनस्पति जीव लोकना एक देशने विषे व्याप्त छे. [१०१]. प्रवाह रुपे जोइए तो वनस्पति जीव आदि अने अंत रहित छे; परंतु हाल ते जे रुपे छे ते रुपे जोइए तो ते आदि अने अंत सहित छे. [१०२]. वनस्पति जीवनी उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्षानी अने जघन्य स्थिति अंत मुहूर्त्तनी छे. [१०३ ]. वनस्पति (पनक) जीव वनस्पति कायथी न मूकाय तो तेनी उत्कृष्ट स्थिति असंख्याता काळनी अने जघन्य स्थिति अंत मुहूर्त्तनी छे. [१०४ ]. वनस्पति जीव वनस्पति कायथी चवीने उत्पन्न थाय तेनो उत्कृष्ट आंतरो अनंता काळनो अने जघन्य आंतरो अंत मुहूर्त्तनो छे. [१०५ ]. वनस्पति जीवोनां वर्ण, गंध, रस, स्पर्श अने संस्थानने लइने हजागे भेद पडी शके. [१०६ ]. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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