Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

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Page 333
________________ अ.अ. 1 नेरइया सत्तविहा पुढवीसू सत्तसू भवे । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेहमे ॥१५७॥ रयणाभसक्कराभावालुयाभाय STRI आहिया । पंकामा धूमाभातमा तमतमा तहा ॥१५८॥ धम्मावंसगासेलातहा अंजणरिठ गामघामाघवइचेवणारयाय पुणोपुणो। रयणाइगुत्तओचेवतहाघम्माइणामओ इइ नेरइया एएसत्तहापरिकित्तिया लोगस्स एगदेसंमि तेसव्वेउ | बियाहिया । इत्तो कालविभागंतुतेसिं वोठं चउब्विहं ॥ १५९ ॥ संतइंपप्पणाईया अपज्जव सियाविय । ठिई पडुच्च | साईया सपज्जवसियाविय ॥१६०॥ सागरोवम मेगंतु उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जहन्नेणं दस वास सहस्सिया 11- ॥१६१॥ तिन्नेव सागराऊ उक्छोसेण वियाहिया । दुच्चाए जहन्नेणं एगंतु सागरोवमं ॥ १६२ ॥ सत्तेव सागराऊ | उक्कोसेण वियाहिया । तइयाए जहन्नेणं तिन्नेवउ सागरोवमा ॥ १६३ ॥ दस सागरोवमाऊ उक्कोसेण वियाहिया । चउथ्थीए जहन्नेणं सत्तेवउ सागरोवमा ॥१६४॥ १ नारकी जीव सात नरक-पृथ्वीने विषे वसता होवाथी तेना सात प्रकार छ तेनां नामा-रत्नप्रभा, शकरप्रभा, वालुकमभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमा अने तमतमा, आ प्रमाणे नारकी जीवना सात प्रकार वर्णव्या छे. (१५७-१५८). नारकी जीव लोकना एक देशने विष व्याप्त छ, तेओ आखा लोकने विषे व्याप्त नथी. (१५९). प्रवाह रुपे जोइए तो नारकी जीव आदि अने अंत रहित छे, परंतु हाल ते जे रुपे छे ते रुपे जोइए तो ते आदि अने अंत सहित छे. (१६०). पेली रत्नप्रभा नारकी जीवनी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी छे (१६१). बीजी शर्करप्रभा नारकी जीवनी उत्कृष्ट स्थि सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति एक सागरोपमनी छे. (१६२). त्रीजी वालुकममा नारकी जीवनी उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति त्रण सागरोपमनी छे. (१६३), चोथी पंकपमा नारकी जीवनी उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति सात सागरोपमनी छे. (१६४). Jain Education Intomational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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