Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

View full book text
Previous | Next

Page 338
________________ ३ मणुयादुविहाभेआओतेमेकित्तयओसुण । संमुछिमायमणुया गम्भवकंतियातहा ॥ १९६ ॥ गभ्मवकूतियाजेउतिविहा तेवियाहिया । अकम्मकम्मभूम य अंतरदीवगा तहा ॥ १९७ ॥ पन्नरस तीसइ विहा भेया अठावीसइ । संखाओ Ma कमसो तेसिं इइ एसा वियाहिया ॥१९८॥ संमुछिमाणएसेव भेउहोइ आहिओ। लोगस्स एगदेसंमि ते सव्वे विया हिया ॥१९९॥ संतइंपप्प णाईया अपज्जव सियाविय । ठिई पडुच्च साईया सपज्जव सियाविय ॥२०॥ पलिओवमाइ तिन्निओ उक्कोसेण वियाहिया । आउ ठिई मणुयाणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥२०१॥ पलिओवमाउ तिन्निओ उकोसेणंतु साहिया । पुवकोडि पुहुत्तेणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २०२ ॥ काय ठिई मणुयाणं अणंतरं तेसिमं भवे । अणंत काल मुकोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ २०३ ॥ (३) मनुष्यना वे प्रकार छे, ते तमने कहुं छं ते सांभळो:-१ संमूछिम अने २.गर्भज-गर्भ व्युक्रान्तिका. [१९६]. गर्भ व्युकान्तिका मनुष्यना त्रण प्रकार कह्या छे:--अकर्म भूमिमां वसनारां, कर्म भूमिमां वसनारां अने अन्तर द्वीपमा वसनारां. [ १९७]. कर्म भूमिमां पंदर जातनां (भरत, ऐरावत अने महविदेह दरेकमां पांच पांच जातनां), अकर्म भूमिमा त्रीश जातनां (हैमवत, हरिवर्ष, हैरण्यवत, देवकुरु, अने उत्तरकुरु दरेकमां पांच पांच जातनां) अने अन्तर द्वीपमा २८ जातनां मनुष्य वसे छे एम श्री तीर्थकरे भाख्युं छे. [१९८]. संमूञ्छिम मनुष्यना घणा प्रकार छे. तेओ लोकना एक देशने विष व्याप्त छे. [१९९]. प्रवाह रुपे जाइए तो मनुष्य जीव आदि अने अंत रहित छे, परंतु जे रुपे हाल ते छे ते रुपे जोइर तो ते आदि अने अंत सहित छे. [२००J. मनुष्यनी उत्कृष्ट स्थिति त्रण पल्पोपमनी अने जघन्य स्थिति अंत मुहूर्त्तनी छे. (२०१). मनुष्य जीव मनुष्य कायथी न मूकाय तो तेनी उत्कृष्ट स्थिति त्रण पल्यापम अने पूर्व कोटि वर्षनी अने जघन्य स्थिति अंत मुहूर्त्तनी छे. [२०२]. मनुष्य जीव मनुष्य कायथी | चवीने उत्पन्न थाय तेनो उत्कृष्ट आंतरो अनंत काळनो अने जघन्य आंरो अंत मुहूर्त्तनो छे. (२०३). Jain Education Intematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352