Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

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Page 308
________________ उ. अ. ३४ ३०२ • जातेऊ ठिई खलु उक्कोसा साउ समय मम्भहिया । जहन्नेणं पम्हाए दसउ मुहुत्ता हियाई उकासा ॥ ५४ जा पहाए ठिई खलु उक्कोसा साउ समय मम्भहिया । जहन्नेणं सुकाए तित्तीस मुहुत्त मम्भहिया ॥ ५५ ॥ किम्हा नीला काऊ तिन्निवि एयाओ अहम लेताओ । एयहिं तिर्हिवि जीवो दुग्गइं उववज्जई ॥ ५६ ॥ तेऊ पहा सुक्का तिन्निवि एयाओ धम्म लेसाओ । एयाहिं तिर्हिवि जीवो सुग्गई उववज्जई ॥ ५७ ॥ साहिं सव्वाहिं पढमे समयम्मि परिणयाहिंतु । नहु कस्सइ उववाओ परभवे अयि जीवस्स ॥ ५८ ॥ लेसाहिं सव्वाहिं चरिमे समयम्भि परिणयाहिंतु । नहु कस्सवि उवत्राओ परभवे अध्थि जीवस्स ॥ ५९ ॥ अंतोमुहुत्तंमि गए अंतोमुहुत्तंमि. सेसएचेव लेसाहिं परिणयाहिं जीवागछ्रुति परलोयं ॥ ६० ॥ 1 पद्म लेश्यानी (देवतानी) जघन्य स्थिति तेजो लेश्यानी उत्कृष्ट स्थिति करतां एक समय वधारेनी अने उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम अने एक मुहूर्त्तनी जाणवी. [ ५४ ]. शुक्ल लेश्यानी (देवतानी) जघन्य स्थिति पद्म लेश्यानी उत्कृष्ट स्थिति करती एक समय वधारेनी अने उत्कृष्ट स्थिति तेत्रीश सागरोपम अने एक मुहूर्त्तनी जाणवी. (५५). १० लेश्यानी गतिः -कृष्ण, नील अने कापोत ए त्रण अधर्म लेश्याओ छे. ए त्रण लेश्याए करीने जीव दुर्गतिने पामे छे. (५६). तेजो, पद्म अने शुक्ल ए त्रण धर्म लेश्याओ छे. एत्रण लेश्याए करीने जीव सद्गतिने पामे छे. (५७). ११ लेश्यानुं आयुष्यः - आ सर्व लेश्याओ जीवने प्राप्त थाय तेना प्रथम समयने विषे उपजवापशुं रहेतुं नथी. (५८). आ सर्व लेश्याओ जीवने प्राप्त थाय तेना चरम [ आखर ] समयने विषे उपजवापशुं रहेतुं नथी. [५९]. लेश्यानुं अंतमुहूर्त्त चालतं होय अने तेनो शेष भाग बाकी रह्यो होय ते समये लेश्याना परिणामना प्रमाणमां जीव नवो जन्म प्राप्त करेछे. [६०]. * नोट २–गाथा ५४ अने ५५ मां “दश सागरोपम अने एक ुहूर्त्तनी " अने “ तेत्रीश सागरोपम अने एक मुहूर्त्तनी "लखेलुं छे तेने बदले प्रो. जेकोबीए एवो अर्थ करेलो छे के “ दश मुहूर्त्त वधारेनी " अने " तेजीश मुहूर्त्त वधारेनी ". Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 27 00000000 www.jainelibrary.org

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