Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar
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जोयणाणंतु आयया । तावइयंचेव विछिन्ना तिगुणो साहिय परिरओ ॥ ५९ ॥ अठ्ठ जोयण वाहल्ला सा मझंमि उ.अ. 18| वियाहिया । परिहायंती चरिमंते मवायपत्ताओ तणुययरी॥६०॥ अज्जुण सुवन्नगमई सा पुढवी निम्मला सहावेणं ।
उत्ताणय छत्त संठियाय भणिया जिणवरेहिं ॥ ६१ ॥ संखं क कुंद संकासा पंडुरा निम्मला सुहा । सीयाए जोयणे तत्तो लोयंताओ वियाहिओ ॥६२॥ जोयणस्सउ जो तथ्य कोसो उवरिभो भवे । तरस कोसरस छम्भाए सिध्धाणो
गाहणा भवे ॥६३॥ तथ्थ सिधा महाभागा लोयग्गमि पइछिया। भव प्पवंचउमुक्का सिध्धि वरगइं गया ॥६४॥ al उस्सेहो जस्स जो होइ भवंमि चरमं मिओ। तिभाग हीणा तत्तोय सिध्धाणो गाहणा भवे ॥६५॥ एगत्तेण साईया
अपज्जव सियाविय । पुहुत्तेण अणाईया अपज्जवसियाविय ॥ ६६ ॥
मध्य भागमा आठ जोजन जाडी छे अने घटता घटती छेडे जतां मांखीनी पांख थकी पण पातळी छ. ए पृथ्वी [सिद्ध-शिला श्वेत कांचन समान, स्वभावे निर्मल अने छत्रना आकारनी श्री जिनवरे वर्णवी छे. ए सिद्ध-शिला शंख, अंक-रत्न अने कुन्दना फुल सरखी उजळी छे. अने त्यांची एक जोजन उंचे लोकनो अन्त आवे छे. ते जोजनना छेल्ला कोसना छठा भागने विषे, सिद्धनी अवगाहना छे. त्यां लोकना अग्र भागने विषे महाभाग्यशाळी, अचिंत्य शक्तिना धणी, भव प्रपंचयी मुक्त, मोक्षने प्राप्त थयेला एवा श्री सिद्ध-भगवान बिराजी रह्या छे. [५८-६४]. सिद्धनी अवगाहना पोताना छेग्ला भवने विषे देहनुं जेटलुं प्रमाण होय तेनाथी त्रीजा भागनी ओछी होय छे. [६५]. सिद्धने पृथक्क तरीके (एक आश्री) गणीए तो तेने आदि होय पण अन्त न होय; अने जो समस्त तरीके गणाए तो तेने आदि के अन्त काइ न होय. [६६].
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