Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar
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नेरइय तिरिख्खाउ मणुस्साउ तहेवय । देवाउयं चउथ्थंतु आउ कम्मं चउविहं ॥ १२ ॥ नाम कम्मंतु दुविहं | सुह मसुहंच आहियं। सुहस्सउ बहूभेया एमेव असुहस्सवि ॥१३॥ गोयं कम्मं दुविहं उच्चं नीयंच आहियं । उच्चं
अठ्ठ विहं होइ एवंनीयांप आहियं ॥ १४ ॥ दाणे लाभेय भोगेय उवभोगे वीरिए तहा । पंचविह मंतरायं समासेण | विया हियं ॥१५॥
[५] आयुःकर्म चार प्रकारनां छ :-नर्क, तिथंच, मनुष्य अने देवता. [१२]* (६) नाम-कर्म के प्रकारनां छे :-[१] शुभ-१ नाम-कर्म, [२] अशुभ-नाम-कर्म. शुभ-नाम-कर्मना अनेक ( सामान्य रीते ३७) भेद, अने अशुभ-नाम-कर्मना पण अनेक (सामान्य रीते ३४) भेद कह्या छे. [१३]. (७) गोत्र-कर्म बे प्रकारना छ :-[१] उच्च-गोत्र-कर्म, [२] नीच-गोत्र-कर्म. उच्च गोत्रना आठ | भेद छे तेमज निच्च गोत्रना पण आठ भेद छे.२ [१४]. [८] अंतराय-कर्म पांच प्रकारना छ :-[१]दान-अंतराय-कर्म, [२]लाभ| अंतराय कर्म, (३) भोग-अंतराय-कर्म, [४] उपभोग-अंतराय-कर्म, [५] वीर्य-अंतराय-कर्म.[१५],
*महा आरंभ करवाथी, महा परिग्रहथी, मांस मदीरा वापरवाथी, पचेन्द्रि जीवनो वध करवाथी नारकीनुं आयुष्य बंधाय छे. कपट करवाथी, माया जाळ पाथरवाथी, जुटुं बोलवाथी, जुठां तोल माप राखवाथी, खोटा लेख लखाण उभा करवाथी तिर्यंचनुं आयुष्य बंधाय छे. भद्रीक प्रकृतिथी, विनयवंत स्वभावथी, पर जीवनी दया राखवाथी अने मस्तर भावनो त्याग करवाथी मनुष्यनुं आयुष्य बंधाय छे. सराग संयमथी, संयमा संयमथी, बाळ तपश्चर्याथी, अकाम विर्जराथी देवतार्नु आयुष्य बंधाय छे. १ काया, भाषा अने भावना सरळताथी शुभनाम कर्म बंधाय छे. २ जाती, कूळ, बळ, रुप, तप, श्रुत,लाभ अने सत्ता.३वधी जोगवाइ छतां आ कर्मने प्रभाव भोगवी शकातुं नथी.मो. जेकोबीना शब्दो सत्यछे के-The Karman in question brings about an obstruction to the enjoyment &c. though all other circumstances be favourable. अनाज वीगेरे एक वखत भोगवाय ते भोग अने वस्त्रादि वीगेरे अनेक वखत भोगवाय ते उपभोग.
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