Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar
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| भावस्स मणं गहणं वयंति मणस्स भावं गहणं वयंति। रागस्स हेउं समणुन्न माहु दोसस्सहेउं अमणुन्न माहु
॥ ८८ ॥ भावेसु जो गिद्धि मुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणु मग्गा । 1 वहिएव नागे ॥८९॥ जेयावि दोसं समुवेइ तिव्य तं सिख्खणे सेउ उवेइ दुख्खं दुदंतदोसेण सएण जंतून किंचि
| भावं अवरझई से ॥ ९ ॥ एगंतरत्तो रुइरंसि भावे अतालिसेसेकुणई पओसं । दुख्खस्स संपील मुवेइ बाले । न लिप्पई तेण मुणी विरागे ॥ ९१ ॥ भावाणुगासाणु गएय जीवे चराचरे हिसइणेगरूवे । चित्तेहिते परितावेई. ३ बाले पीलेइ अत्तठ गुरू किलिठे ॥ ९२ ॥ भावाणु वाएण परिग्गहेण उप्पायणे रख्खण संनिओगे । वए विओमेय M३ कहं सुहंसे संभोगकालेय अतित्त लाभे ॥१३॥
मन भावने ग्रहण करे छे अने भाव मननुं आकर्षण करे छ. मनोहर भाव रागर्नु अने अमनोहर भाव द्वेपर्नु कारण [तीर्थकरे] कहयुं छे. [८८]. कामातुर हाथी जेम हाथणीनी पाछळ आडे मार्गे जाय छे अने परवश पडी अकाले मरण पामे छे तेम भावने विषे. 1 तीव्र मूर्छा राखनार अकालिक विनाशने पामेछे. (८९). जे कोइ अमनोहर भाव उपर अति द्वेष आणे छे ते तत्क्षण दुःख पामेछे
तेने जे दुःख उपजे छे तेमां तेना मननो दोष छे. तेमां भावनो काइ दोष नथी. [९०]. जे कोइ मनोहर भाव उपर अति राग करेछे तेने अमनोहर भाव उपर द्वेष उपजेछे. अने तेथी मुर्ख माणस दुःख पामेछे. ज्यारे वीतराग मुनी एवा राग द्वेषयी मुक्त रहेछ.(९१)
मनोहर भावने विष लुब्ध थयेलो जीव अनेक चराचर जीवने हणे छे. स्वार्थमा लीन थयेलो अज्ञानी जीव ए जीवोने अनेक प्रकारे 8 पीडे छे अने तेमने दुःख उपजावे छे. (९२). मनोहर भावनो रागी जीव ते वस्तु प्राप्त करवानी, तेनुं रक्षण करवानी, तेनो उपभोग
करवानी, तेना नाशनी अने तेना विरहनी मर्छने लीधे क्याथी सुखी थाय? ते भोगवती वखते पण तेनाथी तेने तृप्ति थती नथी.(९३).
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