Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

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Page 293
________________ 2008 सोतस्स सव्वस्स दुहस्स मुखो जंवाहई सययं जंतुमेयं । दीहामय विप्पमुक्को पसथ्थो तोहोइ अच्चंत सुही कयथ्थो ।। ११०॥ अणाइ कल प्पभवस्स एसो सव्वरस दुखस्स पमोखमग्गो। वियाहिओ जं समुवेच्च सत्ता कमेण अच्चत सुही भवंति तिबेमि ॥ १११ ॥ ® इति श्री पमायठाणं नामं झयणं दव्यात्तिरसं सम्मत्तं ॥ ३२ ॥ * . अध्ययन ३३. कर्म-प्रकृति. अठ्ठ कम्माइं वोड्यामि आणुपुर्दिव जहक्कम्मं जेहिं बद्धो अयं जीवो संसारे परिवत्तई ॥ १ ॥ नाणा वरणं चेव दंसणा वरणं तहा । वेयणिज तहा मोहं आउ कम्मं तहेवय ॥ २ ॥ नामकम्मंच गोयंच अंतरायं तहेवय ।। जे दुःखो जीवने निरंतर पीडा कर्या करेछे ते दुःखथी ते मुक्त थाय छे. अने आ प्रमाणे कर्म रुपी रोगनी पीडाथी मुक्त थइने ते अत्यंत सुखी थाय छे अने सिद्ध दशाने पामे छे. [११०. अनादि काळथी उत्पन्न थयेला सर्व दुःखरुप जे कर्म तेनाथी मुक्त थवानो मार्ग श्री तीर्थकर भगवाने कही संभळाव्यो छे.जे जीव ए मार्गे प्रवर्त्तशे ते क्रमे क्रमे अत्यंत सुखने पामशे. (१११). * अध्ययन बत्रीशमुं संपूर्ण. * ® अध्ययन ३३. ॐ हवे आठ प्रकारनां कर्म अनुक्रमे कहुँ छ, जे कर्मथी बंधायेलो जीव (चार गति रुप) संसारमा परिवर्तन करे छ. [१].ए | आठ प्रकारनां कर्म संक्षिप्ते नीचे प्रमाणे छ:-[१] ज्ञानावरणीय कर्म [जेम वादळां सूर्यनी कान्ति ढांके छे तेम आंखना पाटा समान आ कर्म ज्ञानने रोके छे]. १ Which acts as an obstruction to right knowledge. आ ज्ञानावरणीय कमे अनंत ज्ञान गुण पामवामां अंतराय रुप छे, ०००००००००००००००००० . Jain Education Intomational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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