Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

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Page 285
________________ उ. अ. ३२ २७९ जेयावि दोसं समुवेइ तिव्वं तं सिख्खणे सेउ उवेइ दुख्खं । दुर्द्दत दोसेण सएण जंतू न किंचि रस अवरझई से ॥६४॥एगंत रत्तो रुइरेरसंमि अतालिसे से कुणई पओस । दुख्खरस संपील मुबेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥६५॥ रसाणुगासाणु गएय जीवे चराचरे हिंसइ णेगरूवे । चित्ते हिंते परितावेइ बाले पीलेइ अतट्ट गुरु किलिडे ॥ ६६ ॥ रसाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायने रख्खण संनिउंगे । वए विओगेय कहं सुहंसे संभोग कालेय अति लाभे ॥६७॥ रसे अतित्तेय परिग्गहंमि सत्तोवसत्तो न उइ तुहिं । अतुट्टि दोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ६८ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहेय । मायामुखं वढ्ढइ लोभ दोसा तथ्थाि दुख्खानवि मुई से ॥६९॥ जे कोइ कटु रस उपर अति द्वेष आणे छे, ते तत्क्षण दुःख पामे छे. तेने जे दुःख उपजे छे तेमां तेनी जीभनो दोष छे, तेमां रसनो कांई दोष नथी. [६४]. जे कोइ मधुर रस उपर अति राग करे छे, तेने कटु रस उपर द्वेष उपजे छे. अने तेथी मूर्ख माणस दुःख पामे छे, ज्यारे वीतराग मुनी एवा राग, द्वेषथी मुक्त रहे छे. [ ६५ ]. सुरसने विषे लुब्ध थयेलो जीव अनेक चराचर जीवने हणे छे. स्वार्थमां लीन थयेलो अज्ञानी जी. व ए जीवाने अनेक प्रकारे पीडे छे अने तेमने दुःख उपजावे छे. [ ६६ ]. सुरसनेो रागी जीव ते वस्तु प्राप्त करवानी, तेनुं रक्षा करवानी, तेनो उपभोग करवानी, तेना नाशनी अने तेना विरहनी मूर्च्छाने लीधे क्यांथी सुखी थाय ? ते भोगवती वखते पण तेनाथी तेने तृप्ति थती नथी. [ ६७ ]. ज्यारे ते रसथी तृप्त थतो नथी, अने मूच्छाने ली ते उपर तेनी आसक्ति बघतीज, जाय छे त्यारे ते असंतोषना दोषयी दुःखी थाय छे, अने लोभथी दोवाइने पारकानी अणदीधी बस्तु हाथ करे छे. (६८). तृष्णा पराभव पामेलो ते प्राणी पारकानी वस्तु ले छे छतां एरस अने परिग्रहथी तेने संतोष थतो नथी. अने पछी लोभना दोषथी ते नामां माया अने जूठ वधे छे, एटलं छतां पण ते दुःखी मुक्त थतो नथी. [६९]. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 000000 0000000000000 www.jainelibrary.org

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