Book Title: Agam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 7
________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, "पिंडनियुक्ति' प्रकार से । ग्रीष्म, हेमंत और वर्षाकाल । एवं देनेवाले तीन प्रकार से - स्त्री, पुरुष और नपुंसक । उन हरएक में तरुण, मध्यम और स्थविर | नपुंसक शीत होते हैं, स्त्री उष्मावाली होती है और पुरुष शीतोष्ण होते हैं । उनमें पुरःकर्म, उदकार्द्र, सस्निग्ध तीन होते हैं । वो हरएक सचित्त, अचित्त और मिश्र तीन प्रकार से हैं । पुरःकर्म और उदकाई में भिक्षा ग्रहण नहीं करनी चाहिए । सस्निग्ध में यानी मिश्र और सचित्त पानीवाले हाथ हों, उस हाथ की ऊंगलियाँ, रेखा और हथेली यदि सखे हो तो भिक्षा ग्रहण किया जाए । भाव - लौकिक और लोकोत्तर, दोनों में प्रशस्त और अप्रशस्त । ग्रास एषणा – बयालीस दोष रहित शुद्ध आहार ग्रहण करके, जाँच करके, विधिवत् उपाश्रय में आकर, विधिवत् गोचरी की आलोचना करे । फिर मुहूर्त तक स्वाध्याय आदि करके, आचार्य, प्राघुर्णक, तपस्वी, बाल, वृद्ध आदि को निमंत्रणा करके आसक्ति बिना विधिवत् आहार खाए। आहार शुद्ध है या नहीं उसकी जाँच करे वो गवेषणा एषणा । उसमें दोष न लगे उस प्रकार आहार ग्रहण करना यानि ग्रहण एषणा । और दोष न लगे उस प्रकार से खाए उसे ग्रास एषणा कहते हैं। संयोजना - वो द्रव्य संयोजना और भाव संयोजना ऐसे दो प्रकार से हैं । यानि उद्गम उत्पादन आदि दोष कौन-कौन से हैं, वो जानकर टालने की गवेषणा करे, आहार ग्रहण करने के बाद संयोजन आदि दोष न लगे ऐसे आहार खाए वो उद्देश है । प्रमाण-आहार कितना खाना उसका प्रमाण । अंगार-अच्छे आहार की या आहार बनाने वाले की प्रशंसा करना । धूम्र-बूरे आहार की या आहार बनानेवाले की नींदा करना । कारण-किस कारण से आहार खाना और किस कारण से न खाए ? पिंड - नियुक्ति के यह आठ द्वार हैं । उसका क्रमसर बयान किया जाएगा। सूत्र-१५ द्रव्यपिंड तीन प्रकार का है । सचित्त, मिश्र और अचित्त । उन हरएक के नौ-नौ प्रकार हैं सचित्त के नौ प्रकार - पृथ्वीकायपिंड़, अप्कायपिंड, तेऊकायपिंड़, वायुकायपिंड़, वनस्पतिकायपिंड़, बेइन्द्रियपिंड़, तेइन्द्रिय पिंड़, चऊरिन्द्रियपिंड़ और पंचेन्द्रियपिंड (मिश्र में और अचित्त में भी नौ भेद समझे।) सूत्र - १६-२२ __ पृथ्वीकाय पिंड़ - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय से सचित्त और व्यवहार से सचित्त। निश्चय से सचित्त - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि पृथ्वी, हिमवंत आदि महापर्वत का मध्य हिस्सा आदि । व्यवहार से सचित्त - जहाँ गोमय, गोबर आदि न पड़े हो, सूर्य की गर्मी या मनुष्य आदि का आना-जाना न हो ऐसे जंगल आदि। मिश्र पृथ्वीकाय - क्षीर वृक्ष, वड़, उदुम्बर आदि पेड़ के नीचे का हिस्सा यानि वृक्ष के नीचे का छाँववाला बैठने का हिस्सा मिश्र पृथ्वीकाय होता है । हल चलाई हुई जमीं आर्द्र हो वहाँ तक, गिली मिट्टी एक, दो, तीन प्रहर तक मिश्र होती है । ईंधन ज्यादा हो पृथ्वी कम हो तो एक प्रहर तक मिश्र । ईंधन कम हो पृथ्वी ज्यादा हो तो तीन प्रहर तक मिश्र । दोनों समान हो तो दो प्रहर तक मिश्र । अचित्त, पृथ्वीकाय, शीतशस्त्र, उष्णशस्त्र, तेल, क्षार, बकरी की लींडी, अग्नि, लवण, काँजी, घी आदि से वध की गई पृथ्वी अचित्त होती है । अचित्त पृथ्वी का उपयोग - लूता स्फोट से हए दाह के शमन के लिए शेक करने के लिए, सर्पदंश पर शेक करने के लिए, अचित्त नमक का, एवं बीमारी आदि में और काऊस्सग्ग करने के लिए, बैठना, उठना, चलना आदि काम में उसका उपयोग होता है। सूत्र - २३-४५ अप्काय पिंड़ - सचित्त मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - धनोदधि आदि, द्रह-सागर के बीच का हिस्सा आदि का पानी । व्यवहार से सचित्त । कुआ, तालाब, बारिस आदि का पानी । मिश्र अपकाय - अच्छी प्रकार न ऊबाला हुआ पानी, जब तक तीन ऊबाल न आए तब तक मिश्र । बारिस का पानी पहली बार भूमि पर गिरते ही मिश्र होता है। अचित्त अपकाय - तीन ऊबाल आया हुआ मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 7Page Navigation
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