Book Title: Agam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 27
________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनियुक्ति' अनाचीर्ण के आठ प्रकार - साधु को पता न चले उस प्रकार से लाया हुआ । साधु को पता चले उस प्रकार से लाया हुआ । साधु को पता न चले उस प्रकार साधु रहे हैं उस गाँव से लाया हुआ । साधु को पता न चले उस प्रकार साधु ठहरे हैं । उसके अलावा दूसरे गाँव से लाया हुआ । साधु को पता न चले उस प्रकार साधु जिस देश में ठहरे हैं उसके अलावा दूसरे देश के दूसरे गाँव से लाया हुआ । (परगाँव से किस प्रकार लाए - १. पानी में उतरकर, २. पानी में तैरकर, ३. तरापे में बैठकर, ४. नाँव आदि में बैठकर लाया हुआ । जलमार्ग से लाने में अप्काय आदि जीव की विराधना हो, या उतरकर आने में पानी की गहराई का खयाल न हो तो डूब जाए, या तो जलचर जीव पकड़ ले या मगरमच्छ पानी में खींच ले, दलदल में फँस जाए आदि । इसलिए शायद मर जाए । जमीं मार्ग से पैदल चलकर, गाड़ी में बैठकर, घोड़े, खच्चर, ऊंट, बैल, गधे आदि बैठकर लाया हुआ । जमीं के मार्ग से आने में पाँव में काँटे लग जाए, कुत्ते आदि प्राणी काट ले, चलने के योग से बुखार आ जाए, चोर आदि लूँट ले, वनस्पति आदि की विराधना हो) साधु को पता चले उस प्रकार से दूसरे गाँव से लाया हुआ । साधु को पता चले उस प्रकार उसी गाँव से लाया हुआ । साधु गाँव में भिक्षा के लिए गए हो तब घर बन्ध होने से वहोराने का लाभ न मिला हो । रसोई न हई हो इसलिए लाभ न मिला हो । रसोई पका रहे हो इसलिए लाभ न मिला हो । स्वजन आदि भोजन करते हो तो लाभ न मिला हो । साधु के जाने के बाद किसी अच्छी चीज आ गई हो इसलिए लाभ लेने का मन करे । साधु के जाने के बाद किसी अच्छी चीज आ गई हो इसलिए लाभ लेने का मन करे । श्राविका निद्रा में हो या किसी काम में हो आदि कारण से श्राविका आहार लेकर उपाश्रय में आए और बताए कि, इस कारण से मुझे लाभ नहीं मिला, इसलिए अब मुझे लाभ दो । ऐसा साधु को पता चले उस प्रकार से गाँव में से लाया हुआ कहते हैं । इस प्रकार बाहर गाँव से लाभ लेने की ईच्छा से आकर बिनती करे । उस साधु को पता चले उस प्रकार से दूसरे गाँव से लाया हुआ। यदि पीछे से अभ्याहत का पता चले तो आहार लिया न हो तो परठवे । खा लिया हो तो कोई दोष नहीं है। जानने के बाद ले तो दोष के भागीदार बने । गीतार्थ साधु भगवंत ने जो लेने का आचरण किया हो उसे आचीर्ण कहते हैं । आचीर्ण दो प्रकार से । क्षेत्र की अपेक्षा से और घर की अपेक्षा से । क्षेत्र अपेक्षा से तीन भेद - उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । क्षेत्र से उत्कृष्ट सौ हाथ तक । क्षेत्र से जघन्य, बैठे-बैठे या खड़े होकर हाथ से ऊपर रहा बरतन लेकर, ऊपर करके या उल्टा-पुल्टा कर दे तो बाकी का मध्यम । इसमें साधे का उपयोग रह सकता हो तो कल्पे । उत्कृष्ट सौ हाथ क्षेत्र की संभावना - जहाँ कईं लोग खाने के लिए बैठे हों, बीच में लम्बी छींड़ी हो, धर्मशाला या वाड़ी हो वहाँ भोजन की चीजें, सौ हाथ प्रमाण दूर है। और वहाँ जाने में संघट्टा आदि हो जाए ऐसा होने से जा सके ऐसा न हो । तब सौ हाथ दूर रही चीज लाए तो वो साधु को लेना कल्पे । देनेवाला खड़ा हो या बैठा हो, तपेली आदि बरतन अपने हाथ में हो और उसमें से भोजन दे तो जघन्य क्षेत्र आचीर्ण कहलाता है। उसमें थोड़ी भी हिल-चाल रही है। जघन्य और उत्कृष्ट के बीच का मध्यम आचीर्ण कहलाता है । घर की अपेक्षा से - तीन घर तक लाया हुआ। एक साथ तीन घर हो, वहाँ एक घर में भिक्षा ले रहे हो तब और दूसरा संघाटक साधु दूसरे घर में एषणा का उपयोग रखते हो, तब तीन घर का लाया हुआ भी कल्पे । उसके अलावा आहार लेना न कल्पे । सूत्र-३७६-३८५ साधु के लिए कपाट आदि खोलकर या तोड़कर दे । तो उद्भिन्न दोष । उद्भिन्न – यानि बँधक आदि तोड़कर या बन्ध हो तो खोले । वो दो प्रकार से । जार आदि पर बन्ध किया गया या ढंकी हई चीज उठाकर उसमें रही चीज देना । कपाट आदि खोलकर देना । ढक्कन दो प्रकार के - सचित्त मिट्टी आदि से बन्ध किया गया, बाँधा हुआ या ढंका हुआ । अचित्त सूखा गोबर, कपड़े आदि से बाँधा हुआ। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 27

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