Book Title: Agam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनिर्यक्ति' सूत्र - ५७३-५८१
मेक्षित (लगा हुआ - चिपका हुआ) दो प्रकार से - सचित्त और अचित्त । सचित्त म्रक्षित तीन प्रकार से - पृथ्वीकाय म्रक्षित, अप्काय म्रक्षित, वनस्पतिकाय म्रक्षित । अचित्त म्रक्षित दो प्रकार से - लोगों में तिरस्कार रूप, माँस, चरबी, रूधिर आदि से म्रक्षित, लोगों में अनिन्दनीय घी आदि से म्रक्षित ।
सचित्त पृथ्वीकाय म्रक्षित - दो प्रकार से । शुष्क, आर्द्र । सचित्त अप्काय म्रक्षित - चार प्रकार से । पूरकर्म स्निग्ध, पूर-कर्म आर्द्र, पश्चात्कर्म स्निग्ध, पश्चात्कर्म आर्द्र । पुरःकर्म साधु को वहोराने के लिए हाथ आदि पानी से साफ करे । पश्चात्कर्म - साधु को वहोराने के बाद हाथ आदि पानी से साफ करे । स्निग्ध-कुछ सामान्य पानी लगा हो वो । आर्द्र - विशेष पानी लगा हो वो । सचित्त वनस्पतिकाय म्रक्षित दो प्रकार से । प्रत्येक वनस्पतिकाय प्रचुर रसवाले - आम आदि के तुरत में किये हुए, ककड़े आदि से लगा हुआ । उसी प्रकार अनन्तकाय चीज के ककड़े आदि से लगे।
पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय, हरएक में सचित्त, मिश्र और अचित्त तीन प्रकार होते हैं। लेकिन यहाँ केवल सचित्त का ही अधिकार लिया है।
तेऊकाय, वायुकाय और त्रसकाय म्रक्षित नहीं हो सकते, क्योंकि लोक में ऐसा व्यवहार नहीं है। अचित्त में भस्म, राख आदि का म्रक्षितपन होता है। लेकिन वो हाथ या बरतन आदि को लगा हो तो उसका म्रक्षितदोष नहीं लगता।
सचित्त - म्रक्षित के चार भाँगा - हाथ म्रक्षित और बरतन म्रक्षित । हाथ म्रक्षित लेकिन बरतन म्रक्षित नहीं | बरतन म्रक्षित लेकिन हाथ म्रक्षित नहीं । बरतन म्रक्षित नहीं और हाथ म्रक्षित भी नहीं । पहले तीन भाँगा का न कल्पे, चौथे भाँगा का कल्पे । गर्हित म्रक्षित में चारो भाँगा का न कल्पे । म्रक्षित चीज ग्रहण करने में चींटी, मक्खी आदि जीव की विराधना की संभावना है । इसलिए ऐसा आहार लेने का निषेध किया है। सूत्र - ५८२-५९९
पृथ्वीकायादि के लिए दो प्रकार से - १. सचित्त, २. मिश्र । सचित्त के दो प्रकार - १. अनन्तर आंतरा रहित, २. परम्पर - आँतरावाला । मिश्र में दो प्रकार - १. अनन्तर, २. परम्पर । इस प्रकार हो सके।
सामान्य से निक्षिप्त के तीन प्रकार हैं - १. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र । तीनों में चार-चार भाँगा होते हैं। इसलिए तीन चतुर्भंगी होती हैं वो ऐसे - १. सचित्त पर सचित्त रखा गया ? मिश्र पर सचित्त रखा गया, सचित्त पर मिश्र रखा हुआ । मिश्र पर मिश्र रखा हुआ । २. सचित्त पर सचित्त रखा हुआ । अचित्त पर सचित्त रखा हुआ सचित्त पर अचित्त रखा हआ। ३. मिश्र पर मिश्र या अचित्त पर मिश्र रखा हआ मिश्र पर अचित्त रखा हुआ।
सचित्त पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय, हरएक पर सचित्त रखा हो उसके छ भेद होते हैं, हरएक पर अचित्त रखा हो उसके छ भेद होते हैं । उस अनुसार अपकाय पर रखे छह भेद, तेऊकाय के छह भेद, वायुकाय के छह भेद, वनस्पतिकाय के छह भेद और त्रसकाय के छह भेद कुल मिलाके ३६ भेद होते हैं । मिश्र पृथ्वीकाय आदि के ३६ भाँगा मिश्र पृथ्वीकाय आदि पर सचित्त पृथ्वीकाय आदि के ३६ भाँगा कुल १४४ भाँगा । इस प्रकार दूसरी और तीसरी चतुर्भंगी के १४४-१४४ भाँगा समझना । कुल मिलाके ४३२ भेद होते हैं । पुनः हरएक में अनन्तर और परम्पर ऐसे भेद होते हैं। तीन चतुर्भंगी में दूसरी और तीसरी चतुर्भंगी का चौथा भाँगा (अचित्त पर अचित्त) साधु को कल्पे । उसके अलावा भाँगा पर रहा न कल्पे।
दूसरे मत से सचित्त पर सचित्त मिश्र रखा हुआ । अचित्त पर सचित्त मिश्र रखा हआ । सचित्त मिश्र पर अचित्त रखा हुआ । अचित्त पर अचित्त रखा हुआ । इसमें भी पृथ्वीकायादि पर पृथ्वीकायादि के ३६-३६ भाँगा होते हैं । कुल १४४ भाँगा । पहले तीन भाँगा पर चीज साधु को न कल्पे, चौथा भाँगा पर रही चीज कल्पे । इसमें मिट्टी आदि पर सीधे पकवाना, मंडक आदि रहे हो वो अनन्तर और बरतन में रहे पकवान आदि परम्पर पृथ्वीकाय निक्षिप्त कहलाते हैं । पानी पर घृतादि अनन्तर और उसी बरतन आदि में रहे परम्पर अप्काय निक्षिप्त होता है ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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