Book Title: Agam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनियुक्ति' के जैसा दीन आचरण करना । चिकित्सा दोष - दवाई देना या बताना । क्रोधदोष - क्रोध करके भिक्षा लेना । मानदोष – मान करके भिक्षा लेना । मायादोष – माया करके भिक्षा लेना । लोभदोष - लोभ रखकर भिक्षा लेना। संस्तवदोष - पूर्व-संस्तव - माता आदि का रिश्ता बनाकर भिक्षा लेना, पश्चात् संस्तवदोष - श्वशूर पक्ष के सांस ससूर आदि के सम्बन्ध से भिक्षा लाना । विद्यादोषी - जिसकी स्त्री समान, देवी अधिष्ठिता हो उसे विद्या कहते हैं, उसके प्रयोग आदि से भिक्षा लेना । मंत्रदोष - जिसका पुरुष समान-देव अधिष्ठित हो उसे मंत्र कहते हैं उसके प्रयोग आदि से भिक्षा लेना । चूर्णदोष, सौभाग्य आदि करनेवाला चूर्ण आदि के प्रयोग से भिक्षा लेना । योगदोष - आकाश गमनादि सिद्धि आदिके प्रयोग से भिक्षा लेना । मूलकर्मदोष, वशीकरण, गर्भशाटन आदि मूलकर्मके प्रयोग से भिक्षा लेना । धात्रीपन खुद करे या दूसरों से करवाए, दूतीपन खुद करे या दूसरों से करवाए यावत् वशीकरणादि भी खुद करे या दूसरों से करवाए और उससे भिक्षा पाए तो 'धात्रीपिंड', 'दूतीपिंड' आदि उत्पादना के दोष कहलाते हैं। सूत्र-४४३-४४४
बच्चे की रक्षा के लिए रखी गई स्त्री धात्री कहलाती है । वो पाँच प्रकार की होती है । बच्चे को स्तनपान करवानेवाली, बच्चे को स्नान करवानेवाली, बच्चे को वस्त्र आदि पहनानेवाली, बच्चे खेलानेवाली और बच्चे को गोद में रखनेवाली, आराम करवानेवाली । हरएक में दो प्रकार । एक खुद करे और दूसरा दूसरों से करवाए। सूत्र - ४४५-४६२
पूर्व परिचित घर में साधु भिक्षा के लिए गए हो, वहाँ बच्चे को रोता देखकर बच्चे की माँ को कहे कि, यह बच्चा अभी स्तनपान पर जिन्दा है, भूख लगी होगी इसलिए रो रहा है । इसलिए मुझे जल्द वहोराओ, फिर बच्चे को खिलाना या ऐसा कहे कि, पहले बच्चे को स्तनपान करवाओ फिर मुझे वहोरावो, या तो कहे कि, अभी बच्चे को खिला दो फिर मैं वहोरने के लिए आऊंगा । बच्चे को अच्छी प्रकार से रखने से बुद्धिशाली, निरोगी और दीर्घ आयुवाला होता है, जब कि बच्चे को अच्छी प्रकार से नहीं रखने से मूरख बीमार और अल्प आयुवाला बनता है। लोगों में भी कहावत है कि पुत्र की प्राप्ति होना दुर्लभ है इसलिए दूसरे सभी काम छोड़कर बच्चे को स्तनपान करवाओ, यदि तुम स्तनपान नहीं करवाओगे तो मैं बच्चे को दूध पिलाऊं या दूसरों के पास स्तनपान करवाऊं । इस प्रकार बोलकर भिक्षा लेना वो धात्रीपिंड़ । इस प्रकार के वचन सुनकर, यदि वो स्त्री धर्मिष्ठ हो तो खुश हो । और साधु को अच्छा-अच्छा आहार दे, प्रसन्न हुई वो स्त्री साधु के लिए आधाकर्मादि आहार भी बनाए।
वो स्त्री धर्म की भावनावाली न हो तो साधु के ऐसे वचन सुनकर साधु पर गुस्सा करे । शायद बच्चा बीमार हो जाए तो साधु की नींदा करे, शासन का ऊड्डाह करे, लोगों को कहे कि, उस दिन साधु ने बच्चे को बुलाया था या दूध पीलाया था या कहीं ओर जाकर स्तनपान करवाया था इसलिए मेरा बच्चा बीमार हो गया । या फिर कहे कि, यह साधु स्त्रीयों के आगे मीठा बोलता है या फिर अपने पति को या दूसरे लोगों को कहे कि, यह साधु बूरे आचरण वाला है, मैथुन की अभिलाषा रखता है । आदि बातें करके शासन की हीलना करे । धात्रीपिंड़ में यह दोष आते हैं।
भिक्षा के लिए घूमने से किसी घर में स्त्री को फिक्रमंद देखकर पूछे कि, क्यों आज फिक्र में हो ? स्त्री ने कहा कि, जो दुःख में सहायक हो उन्हें दुःख कहा हो तो दुःख दूर हो सके । तुम्हें कहने से क्या ? साधु ने कहा कि, मैं तुम्हारे दुःख में सहायक बनूँगा, इसलिए तुम्हारा दुःख मझे बताओ । स्त्रीने कहा कि मेरे घर धात्री थी उसे किसी शेठ अपने घर ले गए, अब बच्चे को मैं कैसे सँभाल सकूँगी? उसकी फिक्र है । ऐसा सुनकर साधु उससे प्रतिज्ञा करे कि, तुम फिक्र मत करना, मैं ऐसा करूँगा कि उस धात्री को शेठ अनुमति देंगे और वापस तुम्हारे पास आ जाएगी । मैं थोड़े ही समय में तुम्हें धात्री वापस लाकर दूंगा । फिर साधु उस स्त्री के पास से उस धात्री की उम्र, देह का नाप, स्वभाव, हुलिया आदि पता करके, उस शेठ के वहाँ जाकर शेठ के आगे धात्री के गुण-दोष इस प्रकार बोले की शेठ उस धात्री को छोड़ दे । छोड़ देने से वो धात्री साधु के प्रति द्वेष करे, उड्डाह करे या साधु को मार भी डाले आदि दोष रहे होने से साधु को धात्रीपन नहीं करना चाहिए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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