Book Title: Agam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, "पिंडनियुक्ति' पानी, एवं दूसरे शस्त्र आदि से वध किया गया पानी अचित्त हो जाता है । अचित्त अप्काय का उपयोग - शेक करना, तृषा छिपाना, हाथ, पाँव, वस्त्र, पात्र आदि धोने में उपयोग होता है । (यहाँ मूल नियुक्ति में वस्त्र किस प्रकार धोना, उसमें वड़ील आदि के कपड़े, क्रम की देखभाल, पानी कैसे लेना आदि विधि भी है जो ओघनियुक्ति में भी आई ही है। इसलिए उस विशेषता यहाँ दर्ज नहीं की है।) सूत्र-४६-४८ अग्निकाय पिंड़- सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से ईंट के नीभाड़े के बीच का हिस्सा एवं बिजली आदि का अग्नि । व्यवहार से - अंगारे आदि का अग्नि । मिश्र अग्निकाय - तणखा मुर्मुरादि का अग्नि । अचित्त अग्नि - चावल, कुर, सब्जी, ओसामण, ऊबाला हुआ पानी आदि अग्नि से परिपक्व । अचित्त अग्निकाय का उपयोग - ईंट के टुकड़े, भस्म आदि का उपयोग किया जाता है । एवं आहार पानी आदि में उपयोग किया जाता है । अग्निकाय के शरीर दो प्रकार के होते हैं । बद्धलक और मुक्केलक। बद्धलक यानि अग्नि के साथ सम्बन्धित हो ऐसे । मुक्केलक अग्नि समान बनकर अलग हो गए हो ऐसे | आहार आदि मुक्केलक अग्निकाय हैं और उसका उपयोग किया जाता है। सूत्र-४९-५७ वायुकाय पिंड़ - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - रत्नप्रभादि पृथ्वी के नीचे वलयाकार में रहा घनवात, तनुवात, काफी शर्दी में जो पवन लगे वो, काफी दुर्दिन में वाता हुआ वायु आदि । व्यवहार से सचित्त - पूरब आदि दिशा का पवन, काफी शर्दी और काफी दुर्दिन रहित लगता पवन । मिश्र - दत्ति आदि में भरा वायु कुछ समय के बाद मिश्र । अचित्त - पाँच प्रकार से । आक्रांत - दलदल आदि दबाने से नीकलता वायु । धंत-मसक आदि का वायु । पीलित धमण आदि का वायु । शरीर, अनुगत, श्वासोच्छ्वास, शरीर में रहा वायु । मिश्र - कुछ समय तक मिश्र फिर सचित्त । अचित्त वायुकाय का उपयोग - अचित्त वायु भरी मसक तैरने के काम में ली जाती है, एवं ग्लान आदि के उपयोग में ली जाती है। अचित्त वायु भरी मसक क्षेत्र से सौ हाथ तक तैरे तब तक अचित्त, दूसरे सौ हाथ तक यानि एक सौ एक वे हाथ से दो सौ हाथ तक मिश्र, दो सौ हाथ के बाद वायु सचित्त हो जाता है। स्निग्ध (वर्षाऋतु), ऋक्ष (शर्दी-गर्मी) काल में जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट अचित्त आदि वाय की पहचान के लिए कोठा। काल अचित्त मिश्र सचित्त उत्कृष्ट स्निग्धकाल एक प्रहर तक दूसरे प्रहर तक दूसरे प्रहर की शुरूआत से मध्यम स्निग्धकाल दो प्रहर तक तीसरे प्रहर तक चौथे की शुरूआत से जघन्य स्निग्धकाल दो प्रहर तक चार प्रहर तक पाँचवे की शुरूआत से जघन्य रूक्षकाल एक दिन दूसरे दिन तीसरे दिन मध्यम रूक्षकाल दो दिन तीसरे दिन चौथे दिन उत्कृष्ट रूक्षकाल तीन दिन चौथे दिन पाँचवे दिन सूत्र - ५८-६२ वनस्पतिकायपिंड - सचित्त, मिश्र । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - अनन्तकाय वनस्पति । व्यवहार से सचित्त - प्रत्येक वनस्पति । मिश्र - मुझाये हुए फल, पत्र, पुष्प आदि, साफ न किया हुआ आँटा, खंडीत की गई डाँगर आदि । अचित्त-शस्त्र आदि से परिणत वनस्पति । अचित्त वनस्पति का उपयोग संथारो, कपडे, औषध आदि में उपयोग होता है। सूत्र- ६३-६७ बेइन्द्रियपिंड़, तेइन्द्रियपिंड़, चऊरिन्द्रियपिंड, पंचेन्द्रियपिंड़ यह सभी एक साथ अपने अपने समुह रूप हो मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” pade Page 8Page Navigation
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