Book Title: Agam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 5
________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनियुक्ति' [४१/२] पिंडनियुक्ति मूलसूत्र-२/१- हिन्दी अनुवाद मोक्ष की प्राप्ति के लिए संयम जरुरी है । संयम साधना मनुष्य देह से होती है । शरीर टिकाए रखने के लिए आहार जरुरी है । यह आहार शुद्धि या निर्दोष आहार के लिए दसवेयालियं' सूत्र में पाँचवा पिंडैषणा नामक अध्ययन है । उस पर श्री भद्रबाहुस्वामी की रची हुई पिंडनिज्जुत्ति है । जिसमें भाष्य गाथा भी है और पू. मलयगीरी महाराज की टीका भी है। (हमने करीबन १३५ अंक पर्यंत की नियुक्ति - भाष्य के अक्षरशः अनुवाद के बाद महसूस किया कि, साधु-साध्वी को प्रत्यक्ष और नितांत जरुरी ऐसे इस आगम का गाथाबद्ध अनुवाद करने की बजाय उपयोगिता मूल्य ज्यादा प्रतीत हो उस प्रकार से आवश्यकता के अनुसार थोड़ा विशेष सम्पादन-संकलन करके और जरुरत के अनुसार वृत्ति-टीका का सहारा लेकर यदि अनुवाद किया जाए तो विशेष आवकार्य होगा । इसलिए गाथाबद्ध अनुवाद न करते हुए विशिष्ट पदच्छेद के रूप में अनुवाद दिया है।) क्षमायाचना सह-मुनि दीपरत्नसागर । सूत्र-१-१४ पिंड़ यानि समूह | वो चार प्रकार के - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । यहाँ संयम आदि भावपिंड़ उपकारक द्रव्यपिंड़ है । द्रव्यपिंड़ के द्वारा भावपिंड़ की साधना की जाती है । द्रव्यपिंड़ तीन प्रकार के हैं । आहार, शय्या, उपधि । इस ग्रंथ में मुख्यतया आहारपिंड़ के बारे में सोचना है । पिंड़ शुद्धि आठ प्रकार से सोचनी है । उद्गम, उत्पादना, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम्र और कारण । उद्गम - यानि आहार की उत्पत्ति । उससे पैदा होनेवाले दोष उद्गमादि दोष कहलाते हैं, वो आधाकर्मादि सोलह प्रकार से होती है, यह दोष गृहस्थ के द्वारा उत्पन्न होते हैं । उत्पादना यानि आहार को पाना उसमें होनेवाले दोष उत्पादन आदि दोष कहलाते हैं, वो धात्री आदि सोलह प्रकार से होती है । यह दोष साधु के द्वारा उत्पन्न होते हैं । एषणा के तीन प्रकार हैं । गवेषणा एषणा, ग्रहण एषणा और ग्रास एषणा । गवेषणा एषणा के आठ प्रकार - प्रमाण, काल, आवश्यक, संघाट्टक, उपकरण, मात्रक, काऊस्सग्ग, योग और अपवाद । प्रमाण - भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर दो बार जाना । अकाले ठल्ला की शंका हुई हो तो उस समय पानी ले । भिक्षा के समय गोचरी पानी ले । काल - जिस गाँव में भिक्षा का जो समय हुआ हो तब जाए। आवश्यक – ठल्ला मात्रादि की शंका दूर करके भिक्षा के लिए जाए । उपाश्रय के बाहर नीकलते ही 'आवस्सहि' कहे । संघाट्टक दो साधु साथ में भिक्षा के लिए आए । उपकरण - उत्सर्ग से सभी उपकरण साथ लेकर भिक्षा के लिए जाए। सभी उपकरण साथ लेकर भिक्षा के लिए जाना समर्थ न हो तो पात्रा, पड़ला, रजोहरण, दो वस्त्र और दांडा लेकर गोचरी जाए । मात्रक - पात्र के साथ दूसरा मात्रक लेकर भिक्षा के लिए जाए । काऊस्सग्ग करके आदेश माँगे । 'संदिसह' आचार्य कहे, 'लाभ' साधु कहे (कहं लेसु) आचार्य कहे (जहा गहियं पुव्वसाहूहिं) योग - फिर कहे कि आवस्सियाए जस्स जोगो' जो-जो संयम को जरुरी होगा वो ग्रहण करूँगा। ___ गवेषणा दो प्रकार की है । एक द्रव्य गवेषणा, दूसरी भाव गवेषणा । द्रव्य गवेषणा - वसंतपुर नाम के नगर में जितशत्रु राजा को धारिणी नाम की रानी थी । एक बार चित्रसभा में गई, उसमें सुवर्ण पीठवाला मृग देखा । वो रानी गर्भवती थी, इसलिए उसे सुवर्ण पीठवाले मृग का माँस खाने का दोहलो (ईच्छा) हुई । वो ईच्छा पूरी न होने से रानी का शरीर सूखने लगा । रानी को कमझोर होते देखकर राजाने पूछा कि, तुम क्यों कमझोर होती जाती हो ? तुम्हें क्या दुःख है ? रानी ने सुवर्ण पीठवाले मृग का माँस खाने की ईच्छा की बात कही । राजा ने अपने पुरुषों को सुवर्णमृग को पकड़कर लाने का हुकम किया । पुरुषोंने सोचा कि सुवर्णमृग को श्रीपर्णी फल काफी प्रिय होते हैं, लेकिन अभी उस फल की मौसम नहीं है । इसलिए नकली फल बनाकर जंगल में गए । वहाँ उस मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 5

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