Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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पारंचियं भिक्खं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावित्तए जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया || '२५८'१२३। दो साहम्मिया एगयओ विहरन्ति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा 'अहं णं भन्ते! अमुगेणं साहुणा सद्धिं इमम्मि य इमंमि य कारणमिम पडिसेवी' से तत्थ पुच्छियव्ये "किं पडिसेवी अपडिसेवी?' से य | वएज्जा 'पडिसेवी' परिहारपत्ते, से य वएज्जा 'नो पडिसेवी' नो परिहारपत्ते, जं से पमाणं व्यइ से पमाणओ वत्तव्ये | सिया, से किमाह भन्ते!?, सच्चपइना ववहारा २७० १२४। भिक्खू य गणाओ अवक्कम ओहाणुप्पेही गच्छेज्जा, से य आहच्च् अणोहाइए, से य इच्छेज्जा दोच्चपि तमेव गणं उवसंपज्जिताणं विहरित्तए, तत्थ णं थेराणं इमेयारूवे विवाए | | समुष्पज्जित्था 'इमं णं अज्जो! जाणह किं पडिसेविं अपडिसेविं?, से य पुच्छियव्ये "किं पडिसेवी अपडिसेवी?' से य वएज्जा 'पडिसेवी' परिहारपत्ते, से य वएज्जा 'नो पडिसेवी' नो परिहारपत्ते, जं से पमाणं क्यइ से पमाणओ घेत्तव्ये, से किमाह भन्ते!?, सच्चपइन्ना ववहारा '३१९।२५। एगपक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ आयरियउवझायाणं इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारित्तए वा जहा वा तस्स गणस्स पत्तियं सिया '३५५'१२६। बहवे परिहारिया बहवे अपरिहारिया इच्छेज्जा एगयओ एगमासं वा दुभासं वा तिमासं वा चउमासं वा पंचमासं वा छम्मासं वा वत्थए, ते अन्नमन्नं संभुंजन्ति अन्नमनं नो संभुंजन्ति मासं, तओ पच्छा सव्वेवि एगयओ संभुंजन्ति '३६४१२७) परिहारकप्पट्ठियस्स भिक्खुस्स श्री व्यवहारसूत्रम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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