Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 13
________________ उत्तराध्ययन सूत्रम्। _(तृतीयो भागः) ॥अथ पञ्चदशमध्ययनम् ॥ व्याख्यातं चतुर्दशमध्ययनम् । संप्रति सभिक्षु नामकं पञ्चदशमध्ययनं प्रारभ्यते। अस्य च पूर्वेण सहायमभिसम्बन्धः-पूर्वस्मिन्नध्ययने निर्निदानतागुणः प्रोक्तः, स च भिक्षोरेव, भिक्षुत्वं च गुणाधीनम्, इति भिक्षोगुणा अस्मिन्नध्ययने प्रोच्यन्ते, इत्यनेन संबन्धेनायातस्यास्य पञ्चदशाध्ययनस्येदमादिमं मूत्रम्मूलम्-मोगं चरिस्तामि समिच्च धम्म, सहिए उजुकडे णियाणछिन्ने। संवं जहेज अकामकामे, अन्नायएसी परिवैए से भिखू ॥१॥ छाया-मौनं चरिष्यामि समेत्य धर्म, सहित ऋजुकृतो निदानच्छिन्नः । संस्तवं जह्यादकामकामः, अज्ञातैषी परिव्रजेत्स भिक्षुः ॥ १॥ टीका--'मोणं' इत्यादि । पन्द्रहवां अध्ययन प्रारंभ चौदहवां अध्ययन समाप्त हुवा। अब पन्द्रहवां अध्ययन प्रारंभ होता है। इस अध्ययन का नाम सभिक्षु अध्ययन है चौदहवें अध्ययन के साथ इसका संबंध इस प्रकार से है-चौदहवें अध्यय में निर्निदानतागुणरूप से प्रकट की गई है, और वह भिक्षु के ही होती हैं। कारण कि भिक्षुपन गुण के आधीन होता है। इस लिये इस अध्ययन में भिक्षुओं के गुणों का कथन किया जायगा। इसी संबंध को लेकर इसका प्रारंभ किया गया है। इसका यह सर्व प्रथम सूत्र है-'मोणं' इत्यादि । પંદરમા અધ્યયનને પ્રારંભ ચૌદમું અધ્યયન સંપૂર્ણ થયું, હવે પંદરમા અધ્યયનને પ્રારંભ થાય છે. આ અધ્યયનનું નામ સભિક્ષુ અધ્યયન છે ચૌદમા અધ્યયનની સાથે આ અધ્યયનને સંબંધ આ પ્રમાણે છે.–ચૌદમા અધ્યયનમાં નિનિદાનતા ગુણરૂપથી પ્રગટ કરવામાં આવેલ છે. અને તે ભિક્ષુને જ હોય છે કારણ કે, ભિક્ષુપણું ગુણને આધીન હોય છે. આ માટે આ અધ્યયનમાં ભિક્ષુઓના ગુણોનું કથન કરવામાં આવશે. આ સંબંધને લઈને એને પ્રારંભ કરવામાં આવેલ છે. આ અધ્યયનનું સહુથી પહેલું સૂત્ર છે. "मोणं" त्याह! उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3

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