Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मुनिहर्षिणी टीका अ. ६ नास्तिकवादिवर्णनम्
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तस्मात् (परिग्रहात्) । एवम् अनेन प्रकारेण सर्वस्मात् (६) क्रोधात् क्रोधः = अक्षमा परिणामः क्रोधमोहनीयोदयजन्यः कृत्याकृत्यविवेकोन्मूलकः स्वपरयोरपाय हेतुरन्तर्बहिः कम्पनलक्ष्यो जीवपरिणामविशेषस्तस्मात् ।
(७) मानः = अभिमानोऽहङ्कार इति यावत् स च जातिकुलादिसमुत्पन्नः सकलानर्थमूलम् । उक्तञ्च
" अहङ्कारग्रहो यावद, हृदययोनि विद्यते ।
तावत् सुखसमाधीनां नैव लेशोऽपि वर्तते " ॥ १ ॥
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क्षान्ति का शत्रु है | व्याक्षेप का मित्र है, अर्थात् धर्मकर्म्य में अन्तराय करने वाला है । अहङ्कार का घर है । ध्यान का भयंकर शत्रु है । दुःख का उत्पादक है । सुख का विनाशक है । पाप के रहने का निज स्थान है । विद्वान को भी वह परिग्रह क्रूर ग्रह के समान क्लेश और नाशदशा को पहुँचाता है ॥ १ ॥
ऐसे परिग्रह से, तथा क्रोध से -
(६) क्रोध - अक्षमारूप परिणाम को क्रोध कहते हैं, क्रोध मोहनीय के उदय से उप्तन्न होने वाला, कृत्य और अकृत्य के विवेक को भुलाने वाला स्वपर को सन्ताप पहुँचाने वाला, भीतर और बाहर कम्पन उसन्न करने वाला जीव परिणाम विशेष ही क्रोध कहा जाता है, इस क्रोध से ।
(७) मान - अभिमान, अहंकार । यह जाति और कुल आदि से उप्तन्न होता है, एवं सर्व अनर्थ का मूल है । कहा भी हैવ્યાક્ષેપના મિત્ર છે, અર્થાત્ ધર્મકાર્યોંમાં અન્તરાય કરવાવાળા છે. અહંકારનું ઘર છે. ધ્યાનનેા ભયંકર શત્રુ છે. દુ:ખને ઉત્પાદક છે સુખને વિનાશક છે. પાપને રહેવાનું નિજસ્થાન છે. વિદ્વાનને પણ આ પરિગ્રહ ક્રૂરગ્રહની પેઠે કલેશ તથા નાશદશાને પમાડે છે (૧)
એવા પરિગ્રહથી તથા ક્રાપથી
(१) क्रोध - अक्षभाय परिणामने ओघ उहे छे. धिमेोहनीयना उदयथी उत्पन्न થવાવાળા, કૃત તથા અકૃતના વિવેકથી રહિત કરવાવાળા સ્વપરને સત્તાપ પહેાંચાડનાર, અંતરમાં અને બહાર કમ્પન ઉત્પન્ન કરવાવાળા જીવપરિણામ-વિશેષને જ ક્રધ કહેવાય છે. આ ક્રેાધથી–
(७) मान अभिमान, अहंअर, मे मति ने उस माहिथी उत्पन्न थाय छे. ते सर्व रयानर्थतुं भूज छे. उधुं पशु छे:
શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર