Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सुनिहर्षिणी टीका अ. १० देवभवनिदान (६) वर्णनम्
४१७
अल्पविरतिमन्तो भवन्ति । सर्वप्राणभूतजीवसत्त्वेषु आत्मना = स्वयं सत्यमृषा = मिश्रवचनानि विप्रतिवदन्ति = निरर्थक विवादं कुर्वन्ति, तथाहि अहं न हन्तव्यः = न ताडनीयः, अन्ये= मदतिरिक्ताः हन्तव्याः । अहं नाज्ञापयितव्यः = नाऽऽदे - टव्यः, अन्ये आज्ञापयितव्याः । अहं न परितापयितव्यः =न क्लेशयितव्यः, अन्ये परितापयितव्याः । अहं न परिग्रहीतव्यः =न धर्तव्यः, अन्ये परिग्रहीतव्याः । अहं नोपद्रोतव्यः = उपद्रवान्वितो न विधेयः, अन्य उपद्रोतव्याः । एवमेव = अनेनैव प्रकारेण स्त्रीकामेषु - स्त्री सम्बन्धिकामभोगेषु मूच्छिताः = आसक्ताः, गृद्धाः= लोलुपाः, ग्रथिताः = बद्धाः अध्युपपन्नाः = अत्यन्ताऽऽसक्ताः, यावत्- कालमासे का - बहु संयत नहीं है अर्थात् प्राणातिपातादि में पूरी यतना करने वाले नहीं हैं । 'नो बहुविरया' बहुविरत नहीं हैं अर्थात् निवृत्ति भाव पूरा नहीं रखने वाले हैं, और जिन्होंने सब प्राणी भूत, जीव और सत्वों की हिंसा से सर्वथा निवृत्ति नहीं की और अपने आप सत्य मृषा अर्थात् मिश्र भाषा का प्रयोग करते है । जैसे:
।
मुझे मत मारो, दूसरों को मारो, मुझे मारने के लिए आदेश मत करो, दूसरों को मारनेके लिए आदेश करो, मुझको पीडित मत करो, दूसरों को पीडित करो, मुझे मत पकडो, दूसरों को पकडो. मुझे मत परेशान करो, दूसरों को परेशान करो। इस प्रकार प्राणातिपात मृषावाद और अदत्तादान में लगे रहते हैं और इनके साथसाथ वे स्त्रीसम्बन्धी काम - भोगों में 'मुच्छिया' आसक्त रहते हैं । 'गिद्धा ' - लोलुप रहते हैं । ' गढ़िया ' – उन्हीं में बन्धे रहते हैं । 'अज्झोकवन्ना' अत्यन्त आसक्त रहते हैं । वे काल अवसर काल करके वायस ने 'नो बहुसंजया' महु संयंत नथी अर्थात् प्रातियात माहिभां पूरी यतना ४२वावाजा होता नथी, 'नो बहुविरया' महु विश्त नथी अर्थात् निवृत्तिभाव પુરા ન રાખવાવાળા હોય છે તથા જેઓએ સર્વ પ્રાણી, ભૂત, જીવ તથા સત્ત્તાની હિંસાથી સથા નિવૃત્તિ કરી હાતી નથી અને પાતે પેાતાની મેળે સત્યમૃષા અર્થાત્ मिश्रलाषानो प्रयोग उरे छे. नेभो भने न भारो, जीनने भारी, भारा भाटे भारવાના આદેશ ન કરો, ખીજાને માટે આદેશ કરો, મને પીડા ન કરો, ખીજાને પીડા કરે, મને ન પકડા બીજાને પકડો, મને પરેશાન ન કરેા ખીજાને પરેશાન કરોહેરાન કરો. આ પ્રકારના પ્રાણાતિપાત મૃષાવાદ અને અદત્તાદાનમાં લાગેલા (મગ્ન) रहे छे. तथा तेनी साथै साथै स्त्री संबंधी अमलोग मां 'मुच्छिया' आसक्त रहे छे. 'गिद्धा' बोलुप रहे छे. 'गढ़िया' तेमां मंधायेस रहे छे. 'अज्झोववन्ना'
-
શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર