Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 475
________________ मुनिहर्षिणी टीका अ. १० देवभवनिदान (६) वर्णनम् यात? हन्त ! इति कोमलामन्त्रणे प्रतिश्रृणुयात । केवलिप्रज्ञप्तं धर्म स च श्रद्दध्यात् प्रतीयात् रोचेत ? अयमर्थों न समर्थोऽस्ति ॥ मू० ४३ ॥ पूर्वोक्तनिदानकर्तुरन्यतरस्मिन् कस्मिंश्चिद्धमें श्रद्धा भवति न वे ?-त्याह-'अण्णत्थरुई' इत्यादि। मूलम्-अण्णत्थरुई रुइ-मायाए से य भवइ । से जे इमे आरणिया आवसहिया गामंतिया कण्हुई रहस्सिया णो बहुसंजया णो बहुविरया सध्वपाणभूय-जीव-सत्तेसु अप्पणा सञ्चामोसाइं एवं विप्पडिवदंति-अहं ण हंत वो अण्णे हंतव्वा, अहं ण अज्झावेय वो, अण्णे अज्झावेयव्वा, अहं ण परियावेयब्बो, अण्णे परियावेयव्वा, अहं ण परिघेतवो, अण्णे परिघेतब्वा अहं ण उवदवेयचो, अण्णे उवद्दवेय वा। एवामेव इथिकामेहि मुच्छिया, गिद्धा, गढिया, अन्झोववण्णा जाव कालमासे कालं किच्चा अपणतराई आसुराई किब्बिसियाई ठाणाई, उववत्तारो भवंति । तओ विमुच्चमाणा भुजो एल अब निदानकर्म के प्रभावका वर्णन करते हैं-'तस्स णं' इत्यादि। गौतम स्वामी पूछते हैं कि हे भदन्त ! देवलोक से आये हुए एवं पुरुषपने को प्राप्त हुए निदानकर्म वाले को श्रमण अथवा माहन केवलिभाषित धर्म का उपदेश देते हैं ? भगवान्-हे गौतम ! देते हैं । गौतम-क्या वह उपदेश को सुन सकता है ? भगवान्-सुन सकता है । हे भदन्त ! वह केवलिभाषित धर्म में श्रद्धा, प्रतीति और रुचि कर सकता है ? हे गौतम ! नहीं कर सकता ॥ सू० ४३ ॥ व मिहानमा प्रभाव पर्णन ४२ छ.-'तस्स णं' त्याल. ગૌતમ સ્વામી પૂછે છે હે ભદન્ત ! દેવકથી આવેલા અને પુરુષપણાને પ્રાપ્ત થયેલા નિદાનકર્મવાળાને શ્રમણ અથવા માહણ કેવલિભાષિત ધર્મને ઉપદેશ भाषे छ ? लगवान-डे गौतम ! माये छ. गौतम-शुत, पहेशने सानी छ ? ભગવાન-હા, સાંભળી શકે છે. હે ભદન્ત! તે કેવલિભાષિત ધર્મમાં શ્રદ્ધા પ્રતીતિ અને રૂચિ કરી શકે છે? હે ગૌતમ! નથી કરી શકતા. (સ૪૩) શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર

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