Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad
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११
पढमे भागन्दे अमायणे खलु, देवाणुप्पिया! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्मे निसन्ते, से वि य धम्मे मे इच्छिप, पडिच्छिए, अभिरुइए; तं गच्छ णं तुमं, देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वन्दाहि जाव पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावश्यं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जाहि ॥ ५८ ॥
तए णं सा सिवनन्दा भारिया आणन्देणं समणोवासपणं एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठा कोम्बियपुरिसे सहावेह, २ त्ता एवं वयासी-"खिप्पामेव लहुकरण" जाव पज्जुवासह
तए णं समणे भगवं महावीरे सिवनन्दाए तीसे य महा जाव धम्मं कहेइ ।। ६० ॥
तए णं सा सिवनन्दा समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ट जाव गिहिधम्म पडिव. जइ, २त्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, त्ता जामेव दिसि पाउब्भूया, तामेव दिसि पडिगया ॥ ६१ ॥
"भन्ते !" त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमंसह, २त्ता एवं वयासी-" पहू णं, भन्ते ! आणन्दे सम. पोवासए देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डे जाव पव्वइत्तए?"
"नो इणढे समढे गोयमा!आणन्दे णं समणोवासप बहू घासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहिइ, २ त्ता जाव सोहम्मे कप्पे अरुणामे विमाणे देवत्ताए उववजिहिइ”।
तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं आणन्दस्स वि समणोवासगस्स चत्तारि पलि भोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ६२ ॥
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