Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 64
________________ अट्ठमे महासयये अज्झयणे रिया । तं णं तुम, देवाणुप्पिया ! एयस्ल ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवज्जाहि" ॥२६२॥ तए णं से महासयए समणोवासए भगवओ गोयमस्स 'तह' ति पयमझें विणएणं पडिसुणेइ, ५ त्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव अहारिहं च पायच्छित पडिवज्जइ ॥२६३।। तए णं से भगवं गोयमे महासयगस्स समणावासयस्स अन्तिवाओ पडिणिक्खमइ, २ ता रायगिह नयरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छद, २ त्ता जेणेव समणे भगवं महाधीरे तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २त्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥२६॥ .. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ, २ त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥२६॥ तपणं से महासयप समणोवासए बहूहिं सोल जाव भावेत्ता बीर्स वासाइं समणोवासगपरियायं पाणित्ता एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं कारण फासित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सद्धि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणसिए विमाणे देवत्ताए उवचन्ने । चत्तारि पलिओवमाई ठिई । महाविदेहे वासे सिज्झिहिद ॥२६६॥ निक्खेवो॥ अहम महासयजमायणं समन्त ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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