Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha
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शतक ३.-उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. अदत्तरं च णं गोयमा! प्रभू चमरे असुरिंदे, असुरराया तिरियमसंखेने काकडा वाळेला होवाथी जेम ते बन्ने व्यक्तिओ संलग्न जणाय छे दीवसमुद्दे बहूहिं असुरकुमारोहिं देवेहि, देवीहिं य आइण्णे, विति- अथवा जेम पैडानी धरीमा आराओ संलग्न-सुसंबद्ध-आयुक्त-होय, किण्णे, उवत्थडे, संथडे, फुडे, अवगाढावगाढे करेत्तए, एस णं एवी ज रीते असुरेंद्र, असुरराज चमर घणा असुरकुमार देवो अने
- घणी असुरकुमार देवीओवडे आखा जंबूद्वीप नामना द्वीपने आकीर्ण गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स, असुररण्णो अयमेयारूवे विसए, पणा असुरकुमार दवा
करी शके छे, तेम ज व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट अने विसयमेत्ते बुइए, णो चेव णं संपत्तीए विकुविसु वा, विकुव्वति वा
अवगाढावगाढ करे छे अर्थात् ते चमर बीजां रूपो एटलां बधां विकुव्विस्सति वा.
विकुर्वी शके छे, के जेने लइने पूर्वप्रमाणे आ आखो जंबूद्वीप पण भराइ जाय छे. वळी हे गौतम ! असुरेंद्र, असुरराज चमर घणा असुरकुमार देवो अने घणी असुरकुमार देवीओवडे आ तिरछा लोकमां पण असंख्य द्वीप अने समुद्र सुधीनुं स्थळ आकीर्ण करे छे, तथा व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट अने अवगाढावगाढ करी शके छे अर्थात् ते (चमर ) एटलां बधां रूपो विकुर्वी शके छे के जेनाथी असंख्य द्वीप समुद्रो सुधीनुं स्थळ भराइ जाय छे. हे गौतम! - पूर्वे कह्या प्रमाणे एटलां रूपो करवानी असुरेंद्र, असुरराज
चमरनी मात्र शक्ति छे-विषय छे-विषयमात्र छे, पण कोइ वखते ते चमरे पूर्व प्रमाणे (संप्राप्तिवडे ) रूपो कयां नथी, करतो नथी
अने करशे पण नहीं. ४. प्र०—जइ णं भंते ! चमरे असुरिंदे, असुरराया एमहिड्डीए, ४. प्र०—हे भगवन् ! जो असुरेंद्र, असुरराज चमर एवी मोटी जाव-एवइयं च णं पभू विउवित्तए, चमरस्स णं भंते ! असुरिं- ऋद्धिवाळो छे अने यावत्-ते एटलं बधुं विकुर्वण करी शके छे, तो दस्स, असुररण्णो, सामणिया देवा केमहिडीया, जाव-केवइयं हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरराज चमरना सामानिक देवो केवी मोटी च णं पभू विउवित्तए ?
ऋद्धिवाळा छे, यावत्-तेओनी विकुर्वणा शक्ति केटली छे ?
एणं अबसुहम्मस्स अणगार
भते ! श्रीजंवू नामना अवान् महावीरे छट्टा अंगना पहेला अर्थ कह्यो छे ? हे
___“चमरस्स असुरिंदस्स, असुरकुमारनो पंच संगामिया अणिया, पंच “असुरेंद्र, असुरराज चमरने पांच लडायक अनीको-सैन्यो-अने संगामिया अणियाहिबई पण्णत्ताः-पायत्ताणीए, पीढाणीए, कुंजराणीए, पांच लडायक सेनापतिओ कह्यां छः-पदाति अनीक, घोडेखार अनीक, महिसाणीए, रहाणिए. दुमे पायत्ताणियाहिवई, सोदामी आसराया पीढाणी- कुंजरानीक, महिषानीक अने रथानीक. पायदळनो सेनापति दुम छे, घोडेयाहिवई, वेकुंथुहत्थिराया कुजराणीयाहिवई, लोहियक्खे महिसाणीयाहिवई, खारोनो अधिपति अश्वराज सौदामी छे, कुंजरानीकनो खामी वैकुंथु हस्तिकिंनरे रथाणीयाहिवई:-" ( क. आ० पृ० ३५७.)
राज छे, महिषानीकनो सेनापति लोहिताक्ष छे अने रथसैन्यनो सेनापति किन्नर छ:-" ( क. आ० पृ० ३५७.) ए अंगमां चमरेंद्रनी पांच पट्टराज्ञीओना नामोनो पाठ आ प्रमाणे छे:
“चमरस्सणं असुरिंदस्स,असुरकुमाररन्नो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, "असुरेंद्र, असुरकुमारोना राजा चमरने पांच अप्रमहिषीओ कही छे, तं जहाः-काली, राई, रयणी, विज्जू, मेहा":-( क. आ० पृ. ३५६.) ते आ प्रमाणे:-काली, रात्री, रत्नी, विद्युत् अने मेधा":- ( क. आ. पृ० ३५६.) आ पांचे अग्रमहिषीओना पूर्वभवादि माटे ज्ञाताधर्मकथा (अं. ६) मां, श्रुतस्कंध बीजाना पहेला वर्गना पांच अध्ययनो दर्शनीय छे. जेम के:___“ते गं काले णं, ते णं समए णं अबसुहम्मस्स अणगारस्स अंतेवासी “ते काळे, ते समये आर्य श्रीसुधर्मखामी अनगारना अंतेवासी आर्य
अज्जजंबू णाम अणगारे, जाव-पज्जुवासमाणे एवं वयासीः-जइ णं भंते! श्रीजंबू नामना अनगार पर्युपासता यावत्-आ प्रमाणे बोल्याः-जो हे समणेणं भगवया महावीरेणं छहस्स अंगस्स पढमसुयखंधस्स अयं अट्ठे भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीरे छट्ठा अंगना पहेला ध्रुतस्कंधनो ए अर्थ पण्णत्ते, दोचस्स णं भंते ! सुयखंधस्सxx के अढे पण्णत्ते? एवं खलु जंबु। कह्यो छे, तो हे भगवन् ! बीजा श्रुतस्कंधनोxxकयो अर्थ कह्यो छे? हे समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं दस वग्गा पण्णत्ताxxचमरस्स णं जंबु! ए निश्चित छे, के श्रमण भगवान् महावीरे धर्मकथाना दश वर्गों अग्गमहिसीणं पढमे वग्गे पण्णत्तेxx पढमस्स बग्गस्स पंच अज्झयणा कयां छxx तेमां चमरेंद्रनी अन महिषीओनो पहेलो वर्ग कह्यो छेxxअने ते पण्णत्ता, तं जहाः-काली, राई, रयणी, विज्जू, मेहा."xx (क. आ. पहेला वर्गमां आ प्रमाणे ( अनुक्रमे) पांच अध्ययनो कयां छे:-काली, पृ. १४७८-१५०७.)
रात्री, रत्नी, विद्युत् अने मेधा."xx आ पांचे अध्ययनोमा क्रमथी ते ते महिषीनो पूर्व भव, ते भवना माता पिता, स्थळ, राजा वगेरे तथा तेनो बाळभाव, धर्मश्रवण, दीक्षा अने तपश्चर्याथी यावत्-चमरेंद्रनी पट्टराणीपणु, ऋद्धि, परिवार, आयुः वगेरेनो वर्णक छः-(क. आ• पृ. १४७८-१५०७):-अनु०
१. मूलच्छायाः-अयोत्तरं च गौतम ! प्रभुश्चमरः असुरेन्दः, असुरराजस्तिर्यग् असंख्येयान् द्वीप-समुद्रान् बहुभिः असुरकुमारैः देवैः, देवीभिश्च आकीर्णान् , व्यतिकीर्णान् , उपस्तीर्णान् , संस्तीर्णान् , स्पृष्टान् , अवगाढावगाढान् कर्तुम् । एष गौतम ! चमरस्य असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य अयम् एतद्रूपो विषयः, विषयमात्रम् उदितम्, नो चैव संप्राप्त्या व्यकुर्वी वा, विकुर्वति वा, विकुर्विष्यति वा. यदि भगवन् । चमरः असुरेन्द्रः, असुरराजः एवं महर्द्धिकः, यावत् एतावच्च प्रभुः विकुर्वितुम्, चमरस्य भगवन् ! असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य सामानिका देवाः किंमहर्द्धिकाः, यावत्-कियच्च प्रभुर्विकुर्वितुम् !:-अनु.
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