Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 02 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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सुभंगलं अणगारं तच्चंपिरहसिरेणं णोलावेहिति, तए णं से सुभंगले अणगारे विभलवाहणेणं रण्णा तच्चंपिरहसिरेणं नोलाविए समाणे|| आसुरुत्ते जावमिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभिस्सइ त्ता तेयासमुग्धाएणं समोहनिहिति त्ता सत्तट्ठ पयाई पच्चोसक्किहिति त्ता विमलवाहणं रायं सहयं सरहं ससारहियं तवेणं तेएणं जाव भासरासिं करेहिति, सुमंगलेणं भंते! अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं जाव भासरासिं करेत्ता कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति?, गोयमा! सुमंगले णं अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं जाव भासरासिं करेत्ता बहूहिं चउत्थछट्ठमदसमदुवालसजावविंचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावमाणे बहूई वासाई सामनपरियागं पाणिहिति त्ता भासियाए संलेहणाए सर्टि भत्ताई अणसणाए जाव छेदेत्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते उड्ढं चंदिमजावगेविजविमाणावाससयं वीयीवइत्ता सव्वटुसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववजिहिति, तत्थ्णं देवाणं अजहन्त्रमणुक्कोसेणं तेत्तीसंसागरोवमाई ठिती पं०, तत्थ णं सुमंगलस्सवि देवस्स अजहन्नमणुकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पं०, सेणं भंते! सुभंगले देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिन्झिहिति जाव अंतं करेति ।५५९। विमलवाहणे णं भंते! राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहए जाव भासरासीकए समाणे कहिं गच्छिहिति कहिं| उववजिहिति?, गोयमा! विमलवाहणे णं राया सुभंगलेणं अणगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयसि नेरइयत्ताए उववजिहिति, से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववजिहिति, से णं तत्थ सत्थवझे दाहवकंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चपि अहे सत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालद्वितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति, सेणं ॥श्रीभगवती सूत्र।
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पू. सागरजी म. संशोधित
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