Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 02 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 260
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेऽवि एवं चेव अणादीयं अणवदग्गं जाव संसारक्तारं अणुपरियट्टिहिति जहा णं अहं, तए ण ते सभा निग्गंथा दढप्पइन्नस्सा केवलिस अंतियं एयभट्ट सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभविग्गा दढप्पइन्नं केवलिं वंदिहिति ता तस्स ठाणस्स आलोएहिति निदिहिंति जाव पडिवज्जिहिति, तए णं से दढप्पइन्ने केवली बहूई वासाई केवलिपरियागं पाणिहिति त्ता अपणो आउसेसं जाणेत्ता भत्तं पच्चक्खाहिति एवं जहा उववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिति । सेवं भंते! २ त्ति जाव विहरइ १५६१ । तेयनिसग्गो समत्तो ॥ इति पंचदशंशतकं ॥ ___अहिगरणि १ जा २ कम्मे ३ जावतियं ४ गंगदत्त ५ सुमिणे ६ योउवओग७ लोग८ बलि९ ओही १० दीव ११ उदही १२ दिसा १३ थणिया १४ ॥७६ ॥ तेणं कालेणं० रायगिहे जाव पज्जुवासभाणे एवं वयासी अस्थिणं भंते! अधिकरणिसि वाउयाए वक्कमति?, हंता अस्थि, से भंते! किं पुढे उद्दाइ अपुढे उद्दाइ?, गोयमा! पुढे उद्दाइ नो अपुढे उद्दाइ, से भंते! किं ससरीरी निक्खमइ एवं जहा खंदए जाव नो असरीरी निक्खमइ १५६२ । इंगालकारियाए णं भंते! अगणिकाए केवतियं कालं संचिट्ठति?, गोयमा! जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि राइंदियाई, अन्नेऽवि तत्थ वाउयाए वक्कमति, न विणा वाउयाएणं अगणिकाए उज्जलति ।५६३। पुरिसे णं भंते! अयं अयकोटुंसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहमाणे वा पब्विहमाणे वा कतिकिरिए?, गोयमा! जावं च णं से पुरिसे अयं अयकोर्सेसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहिति वा पव्विहिति वा तावं च णं से पुरिसे कातियाए जाव पाणाइवायकिरिया। पंचहि किरियाहिं पुढे, ॥श्रीभगवती सूत्र॥ |पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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