Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 02 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 268
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेणं कालेणं० सक्के देविंदे देवराया वजपाणी एवं जहेव बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविभाणेणं आगओ जाव जेणेव समणे भगवं|| महावीरे तेणेव उवागच्छइत्ता जाव नमंसित्ता एवं व्यासी देवेणं भंते! महड्ढिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू आगमित्तए?, नो तिणढे समढे, देवेणं भंते! महड्ढिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू आगमित्तए?, हंता पभू, देवेणं भंते! महड्ढिए एवं एएणं अभिलावेणं गमित्तए, एवं भासित्तए वा वागरित्तए वा, उम्भिसावेत्तए वा निमिसावेत्तए वा, आउट्टावेत्तए वा पसारेत्तए वा, ठाणं वा सेज वा निसीहियं वा चेइत्तए वा, एवं विउस्सवित्तए वा, एवं परिचारित्तए वा जाव हंता पभू, इमाई अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाई पुच्छइ त्ता संभंतियवंदणएणं वंदति त्ता तमेव दिव्वं जाणविमाणं दूरूहति त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए १५७४। भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नभंसति त्ता एवं क्यासी अत्रदा णं भंते! सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं वंदति नमंसति सकारेति जावपज्जुवासति, किण्हं भंते! अज सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाई पुच्छइ त्ता संभंतियवंदणएणं वंदति णभंसति त्ता जाव पडिगए?, गोयमादी सभणे भगवं म० भगवं गोयम एवं वयासी एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं० महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाणे दो देवा महड्ढिया जाव महेसक्खा एगविमाणंसि देवत्ताए उववना, तं०मायिमिच्छादिहिउववत्रए य अमाथिसम्मदिहिउववत्रए य, तए णं से माथिमिच्छिादिहिउववत्रए देवे तं अमायिसम्मदिहिउववनगं देवं एवं व्यासी परिणममाणा पोग्गला नो परिणया अपरिणया परिणमंतीति पोग्गला नो परिणया अपरिणया, तए णं से ॥ ॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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