Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 16
________________ अध्यात्म मा च मानवादाना छदिआना ॥२॥ 00000000000000000000000 शरीरस्येव तदनुगुणत्वमेवेति कुतस्तद्विरोधित्वं ? यथोक्तसिद्धान्तविधिनादीयमानस्य तस्य रागद्वेषाजनकत्वात् । स्यादेतदु-10 पकरणेष्वभीक्ष्णं ग्रहणमोचनादिप्रवृत्तिरावश्यकी, सा च रागद्वेषाविनाभाविनी, अत एव परप्राणव्यपरोपस्याशुद्धोपयोगसद्भावासद्भावाभ्यामनैकान्तिकच्छेदत्वं उपधेस्त्वशुद्धोपयोगेनैवादानसम्भवादैकान्तिकच्छेदत्वमुक्तं तथा हि (हवदि वण हवदि बंधोमदे ध जीवेध कायचेडमि। बंधो धुवमुवधीदो इदि सवणा छद्दिआ सबन्तीति) मैवं, देहव्यापारेपि सर्वस्यैतस्य तुल्यत्वात् , यतनापूर्वका देहव्यापारा न दोषायेति चेत् ? तुल्यमिदमन्यत्र ॥४॥न खलु बहिरङ्गसङ्गसद्भावे तन्दुलगताशुद्धत्त्वस्येवाशुद्धोपयोगरूपस्यान्तरङ्गच्छेदस्य प्रतिषेध इत्यमरचन्द्रवचनमुत्क्षिपन्नाहउवधिसहिओ ण सुज्झइ सतुसा जह तन्दुला ण सुज्झन्ति। इय वयणं परिकत्तं दूरे दिटुंतवेसम्मा ॥५॥ उपधिसहितो न शुद्ध्यति सतुषा यथा तन्दुला न शुद्ध्यन्ति । इति वचनं प्रक्षिप्त दूरे दृष्टान्तवैषम्यात् ॥ ५॥ यदि हि तन्दुलाविशुद्ध्यापादकत्वं तुषाणामिवोपधेः स्वरूपतः पुरुषाविशुद्धिनिबन्धनत्वं स्यात्तदेदं वचनमुच्चार्यमाणं चारुतामञ्चेन्नचैवमस्ति । अपि चोपधेरुपाधित्वासिद्धौ न तस्याशुद्ध्यनुमापकत्वमुज्जीवति । न चान्यस्मिन् स्वसंसर्गिणि स्वधर्मसङ्कामकत्वलक्षणमुपाधित्वमुपधौ तुष इव(तुषे वा), यत्तु न तुषे तन्दुलस्वभावकार्यप्रतिबन्धकत्वं तत्तूपधौ स्वाभाविक नाद्यापि सिद्धमितियावदविशुद्ध्यापादकसमवधानमुपाधिरप्रयोजकत्वादिदोषग्रासश्च ॥५॥ अथ पराभिहिता उपाधिदोषाः शरीरेऽपि तुल्या इत्युपदिशति १ सहायित्व. २ उपधौ. ३ उपधेः. 00000000000000000000004 in Eduetan HIC For Private & Personel Use Only law.jainelibrary.org

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