Book Title: Adhik Mas Nirnay
Author(s): Shantivijay
Publisher: Shivdanji Premaji Gotiwale

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Page 4
________________ ट . 043 P. . A A 901/ या ७० . अधिक मास निर्णय.। (जैन श्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर-न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजी तर्फसे.) दोहा.] सुरतसे कीरत बडी । विना पंख उडजाय, सुरत तो जाती रहे । कीरत कबु न जाय, आम जैन श्वेतांबर समाजको मालुम हो. इनदिनोमें अधिक महिनेके बारेमें जो जो चर्चा चलरही है. उसका निर्णय इस किताबमे किया जायगा. आपलोग देखिये! और सचका इम्तिहानकिजिये! दरअसल!! इससाल अन्यमजहबके पंचांगकी रुहसे जो दो भादवे महिने आयेथे बंबइसे इसके बारेमे अवल चर्चा उठी. बजयरीये छापेके सवाल जवाब शुरु हुवे. कई हेडबील और किताबे मेरेपास पहुंची. मेरा चौमासा इससाल शहर पुनेमे हुवाथा. कइ जैन मुनिजनोके और श्रावकोके खत मेरेपास आये-कि आप इसका जवाब देवे. जैन शास्त्रोका फरमानहेकि अधिक माहिना कालपुरुषकी चूला यानी चोटीसमान है. आदमीके शरीरके मापमें चोटीका माप नहीं गिनाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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