Book Title: Adhik Mas Nirnay
Author(s): Shantivijay
Publisher: Shivdanji Premaji Gotiwale

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Page 18
________________ आधिकमास निर्णय. ताको छोडिये, या पुरेपनरांहमरौज पाक्षिक प्रतिक्रमण किजिये इसअपेक्षा जैसे कमीवेसी तिथिको गिनतीमेसे छोडदेतेहो, वैसे अधिक महिनाभी चातुर्मासिक वार्षिक और कल्याणिकपर्वके व्रतनियममें छोडदेना चाहिये. यह एक सिधी सडकहै. २०-कल्पमूत्रमें जो पचासमे रौज संवत्सरी करना कहा. और समवायांगसूत्रमें जो सीतेरदिन चौमासेकी पूर्णाहूतिमें बाकी रखना कहा. यहबात वार्षिक पर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा अधिकमहिनागिनतीमें न लेवेतो दोनोंतर्फसे कायम रहसकतीहें, और इसीवातपर तपगछवाले कायमहै. आपलोग संवत्सरीके पेस्तर पचास रौजकी वातपर कायम रहतेहो, मगर बाद संवत्सरीके सीतेररोज रखनेकी वातपर कायम नहीं रहते, देखलो! इसी चौमासेमें आपकी संवत्सरीकेबाद (१००) रौज बाकी रहगयेथे, अगर कहा जाय निशीथचूर्णि दशवकालिकनियुक्तिकी वृहद्वृत्तिके पाठमें अधिक महिना गिनतीमें लियाहै तो जवाबमें मालुमहो फिर आपलोग दो आषाड आवे जब पहले आषाडको चौमासिककृत्यमे गिनतीमें क्यों नहीं लेते? दरअसल ! अभिवर्द्धित संवत्सर तेरहमहिनोंका होताहै इसअपेक्षा आपलोग कहतेहो गिनतीमें लिया. मगर चातुर्मासिक वार्षिक और कल्याणिकपर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा गिनतीमें लेना एसा कहां लिखाहै ? इसका जवाब दिजिये ! बस! इतनीही वातसमजनेकीहै. अगर इसी बातको अछीतरह समज लिइजाय तो कोइशकका काम न रहेगा. २१ इनदिनोमें एक हेडवील छपाहुवा यहां पुनेमें मुजकों मीला. जोकि वंवइसे वजरीये डाकके मेरे नाम आयाथा. इसमे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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