Book Title: Adhik Mas Nirnay
Author(s): Shantivijay
Publisher: Shivdanji Premaji Gotiwale

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Page 33
________________ आधिकमास निर्णय. जमाने तीर्थकरोकेभी धर्मके बारेमे ऐक्यता नही होसकीथी तो आज कैसे होगी? बेशक ! धर्मशास्त्रोके फरमानमर कामील एतकात रखना अछाहै. आजकल रुढीका प्रचार ज्यादा दिखाइ देरहाहै. मगर हरेक शख्शको धर्मश्रद्धामें पावंद बनेरहना फर्ज है. ४३-शास्त्रार्थ करना और सत्यको मंजुर रखना बेशक ! अछाहै. इन्साफके सामने जिसतत्वने शकिस्त नहीं खाइ वो तत्व सचाहै, एसा जानना. इन्साककी बुद्धि पाना बडे पुन्यके ताल्लुकहै इन्साफसे बोलना या लिखना और सभाके नियमा नुसार शास्त्रार्थ करना कोई हर्जकी बात नही, सच बोलना निस्पृह रहना और पूर्वसंचितकमपरभरुसा रखना. यह बात हमेशा केलिये अछीहै. ४४ मेने इसचालुचर्चाके संबंधमें बहुतकुछ लिखाण कररखाहै, उसको छपवाकर पुस्तकाकार जाहिर करना फायदेमंद होगा शास्त्रार्थ करनेसे फायदा नहीं एसा कहना गलतहै. सत्यका बयान करना हमेशां अछाहै. कोई शख्श अपने मंतव्यपर आक्षेप करे और उसके जवाब देनेमे चूप रहना ठीक नही. सचकी हमेशां फतेहहै. ) ब कल्म-जैनश्वेतांतर धर्मोपदेष्टामुकाम-पुना, विद्यासागर-न्यायरत्न-महाराज मुल्क दखन. --शांतिविजयजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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