Book Title: Adhik Mas Nirnay
Author(s): Shantivijay
Publisher: Shivdanji Premaji Gotiwale

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Page 32
________________ अधिकमास निर्णयः बतलायेथे, जो जो जैनश्वेतांबर श्रावक जैनधर्ममें ज्यादा पावंदथे उनोने मंजुर किया. कइ श्रावकोने नहीभी मंजुर किया, इसका कोइ क्या करे. ४० में यह आधिकमासनिर्णय किताब आम जैनश्वेतांबरसंघके सामने रखताहुं. इसको पढिये. अपने दोस्तोकों पढनेकी हिदायत किजिये, जो चर्चा अधिक माहिनेके बारेमे आजकल चलरहीहै इस किताबमे तमाम दलिले दर्ज है, अवलसे अखीरतक देखिये! इस किताबको पढनेसे आप लोग खुद माकुल जवाब देसकेगे, और अपने दिलमे तसल्ली होजायगी कि अधिक महिना चातुर्मासिक, वार्षिक और कल्याणिक वगेरा पर्वकृत्यमें गिनना नही. ४१-अधिकमासकी चर्चाके लिये दोंनों तर्फसे प्रतिज्ञापत्र छपकर जाहिर होचुके है. शास्त्रार्थ करके निर्णय करलो, शास्त्रार्थमें जो जो दलिले पैदा होगी वे बहुतकरके इस किताबमें आचुकीहै, चर्चाके लिये पुस्तकों के बारेमे कोइ एसा कहेकि हमको पुस्तक नही मिलसकते तो जवाबमें मालुमहो. इसमें कोइ क्या करे, अपने मंतव्यकी पुख्तगीकेलिये जो जो पुस्तक चाहिये अपनी तर्फसे चाहेवहांसे मंगवाकर तयार रखना मुनासिबहै. और चर्चामें जो कुछ निर्णय आवे उसको मंजुर रखना लाजिम है, दुनियामे सारवस्तु धर्म है. ४२ में. वादविवादके सवालोका जवाब बजरीये चीठीके देना पसंद नहीं करता, जिसको जो कुछ पुछनाहो. बजरीये छापेके पुछे, याते बाचनेवालोकोभी फायदा पहुंचे. इतना जरुर यादरहे! गछोके जो भेद पडगये है. यह एक न होगे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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