Book Title: Adhik Mas Nirnay
Author(s): Shantivijay
Publisher: Shivdanji Premaji Gotiwale

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Page 13
________________ अधिकमास निर्णय. अब पक्षपाती कौन हुवे. दृष्टिरागी और गडरीहप्रवाहीजन किसको कहना ? इसकी फिरतलाशकिजिये ! सचवातपर अगर कोइ शख्श श्रद्धापूर्वक बरताव करे तो उनको संसारवृद्धि कभी नही होती, न उनको दुर्लभवोधीपना होसकता. १३-फिर खरतरगछके मुनि श्रीयुत माणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर पहलेमें इसमजमुनको पेंशकरते है, विनयविजयजीकृत सुबोधिकाकी उत्सूत्रप्ररुपणाकी वातोको व्याख्यानमे बाचना बंद कर देना. ( जवाब. ) खरतरगछके आचार्य उपाध्यायकी बनाइहुइ कल्पसूत्रकी टीकामें छह कल्याणिककी बातें आवे वो व्याख्यानमें वाचना बंद कर देना चाहिये. क्योंकि आपके खरतरगछके आचार्य श्रीमान् अभयदेवसूरिजी पंचाशकसूत्रकी टीकामें तीर्थकर महावीर स्वामीके पांचकल्याणक फरमातेहै. १४-आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर पहलेमें लिखतेहै, मिथ्यात्वक सार्थवाही धर्मसागरके कदागृही लेखोकी तरह इनकेभी अनुचित लेख जरशरण करदेना चाहिये. ( जवाव ) जलशरण वे लेखकिये जातेहै जो धर्मशास्त्रसे विरुद्ध हो. तपगछके उपाध्याय श्रीविनयविजयजीके लेख जैन शास्त्रसे विरुद्ध और अनुचित कोइ सावीत करे, विना सावीत किये आप उनके लेख जलशरण करदेना कैसे कहसकतेहो ? और आपके कहनेसे क्या होसकता है. आप चाहे जितना कहते रहे. दुनियामें कहलावत है कि साचको आंचनही. अय आपने जो तपगछके उपाध्याय श्रीयुत धर्म सागरजीके बारेमे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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