Book Title: Adhik Mas Nirnay Author(s): Shantivijay Publisher: Shivdanji Premaji Gotiwale View full book textPage 8
________________ अधिकमास निर्णय. मासिककृत्यमें गिनते नही लेते और पक्ष पकडतेहै, अगर इसीवातको इन्साफसे समज लिइजाय तो सब शक रफा होजाय. ६-अगर अधिक महिना गिनतीमे लेनेका पक्षकरते होतो बतलाइये! जबकभी अन्यमतके पंचांगकी रुहसे दो चैतमहिने आवे तव क्या! खरतर गछवाले अंचलगछवाले और लोंकागछवाले नवपदजीका तप दोदफे करेगें, कभी नही, अन्यमतके पंचांगकी रुहसे जबकभी दो कातिक महिने आयगे, तब क्या! दिवाली पर्व आपलोग दोदफेकरेगें ? असलमे चाहेजिसको पुछलो! या धर्मशास्त्र देखलो! कोईपर्व दोदफे नही किया जाता. एकहीदफे कियाजाताहै, चाहे पहलेमे करो या दुसरेमे मगर एकमहिना तो वार्षिक वगेरापर्वकी अपेक्षा छोडनाही पडेगा, इसमे कोइ शकनही. फिर तपगछ्वाले और क्या कहतेहै, यही कहतेहै, वार्षिक पर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा अधिक महिना गिनतीमें मतलो, खरतर गछवाले अंचलगछ और लोंकागछवालेभी चातुर्मासिक और कल्याणिक पर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा पहले आषाडको गिनतीमें नहीलेते, इस बातमें तपगछवालोके मंतव्यपर अमल करतेहै. वार्षिक कृत्यमे (५०) दिनकी गिनतीपर अमल करतेहै, मगर बाद संवत्सरीके (७०) दिनरखना एसाजो समवायांग सूत्रका पाठहै, उसपर अमल नही कर सकते. ७-इससाल पर्युषण और अधिक महिनेके बारेमे जैनश्वेतांबरोकी तर्फसे जितनेलेख छपे उनमें किसीमेभी मेरेनामपर आक्षेप नहीथा. मगर तपगछ उपर आक्षेप आताथा, इस, लिये जवावदेना मुनासिबहुवा, में एक तपगछका जैनShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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