Book Title: Acharanga Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 815
________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्यं. १ उ. ६ सू. ४ ससमारम्भका: ६५९ लज्जमाणा पुढो पास, अणगारा मोत्ति एगे पत्रयमाणा, जमिणं, विरुवस्वेहि सत्येहिं तसकायसमारंभेणं, तसकायसत्यं समारंभमाणा अण्णे अणेगरूबे पाणे विहिंसति ।। मू० ४ ॥ छायालजनमानाः पृथक् पश्य, अनगाराः स्मः, इति एके प्रवदमानाः, यदि विरूपरूपैः शस्त्रसकायसमारम्भेण, सकायशस्त्रं समारभमाणा अन्यान् अनेकरूपान् प्राणान् विहिंसन्ति । सू० ४ ॥ टीका--- लज्जमाना:-परमकरुणयाऽऽर्द्रहृदयतया उसकायसमारम्भे पराङ्मुखाः त्रसकायसमारम्भपरित्यागिनोऽनागारा इत्यर्थः । पृथक्-विभिन्नाः, केचित्प्रत्यक्षज्ञानिनोऽवधिमनःपर्ययकेवलिना, केचित्-परोक्षज्ञानिनो भावितात्मानः, सन्तीति पश्य । यद्वा-पृथक्-द्रव्यलिङ्गिभ्यः पृथग्भावेन सन्तीति पश्य । इमे त्रस मूलार्थ-सकाय के आरंभ में संकोच करने वाले (अनगारों को) अलग समझो। 'हम अनगार हैं' ऐसा कहने वाले कोई-कोई (द्रव्यलिंगी) नाना प्रकार के शस्त्रो का प्रयोग करते हुए और भी अनेक प्रकार के प्राणियों की हिंसा करते हैं उनको अलग देखो । सू० ४ ॥ टीकार्थ-----परम करुणा से जिनका हृदय द्रवित है ऐसे अनगार सकाय के मारंभ से सर्वथा विमुख रहते हैं। ये अनगार अलग-अलग हैं। कोई अवधिमानी कोई मनःपर्ययज्ञानी और कोई केवलज्ञानी हैं। कोई-कोई परोक्षज्ञानी भाविमासा * મૂલાઈ—ત્રસકાયના આરંભમાં સંકેચ કરવાવાળા અણુગારોને અલગ-જદાસમજે, “અમે અણગાર છીએ એ પ્રમાણે કહેવાવાળા કઈ-કઈ વ્યલિંગી, નાના પ્રકારનાં શસેથી ત્રસકાયને આરંભ કરીને, ત્રસકાયનાં શોનો પ્રયોગ કરતા શકા બીજી પણ અનેક પ્રકારના પ્રાણીઓની હિંસા કરે છે. તેને અલગ જુઓ. સૂ૦ ૪ ટીકાથ–પરમ કરૂણાથી જેનું હૃદય દ્રવિત છે એવા અણગાર ત્રસકાયના આરંભથી સર્વથા વિમુખ રહે છે-દૂર રહે છે. તે અણગાર અલગ-અલગ છે. કેઈ , અવધિજ્ઞાની, કોઈ મને પર્યયજ્ઞાની, અને કઈ કેવલજ્ઞાની છે. કઈ-કઈ પરીક્ષાની

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