Book Title: Acharanga Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 879
________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य. १ ३.७ रु. ६ मुखवत्रिकाविचारः ७०९ . अपरच जिनपतिशिष्य व विरचिते सनत्कुमारचरित्रे सनत्कुमाररतीय-पूर्वभविक-'विक्रमयशो'-नृपवर्णनेभिहितम् " मुखेन्दुराजन्मुखवत्रिकय __कयास लेमे विरजा द्विजौथैः । निपेवितः पान्तनिविष्टराज,--- इंसीव विभ्राजि सरः श्रियं यः॥१॥" सनत्कुमारः, तृतीयपूर्वजन्मनि विक्रमयशो नाम नृपोऽभवद् । स च परिपदि धर्मकथाश्रवणार्थ यथोपविष्टस्तद्वर्णनं कुर्वनाइ " मुखेन्दुराजन्मुखवत्रिकथ" इत्यादि । व्याख्या-इन्दुरिव मुखं मुखेन्दुः, मुखेन्दी राजन्ती मुखवत्रिका यस्य स मुखेन्दुराजन्मुखरस्त्रिका, मुखोपरिनिवद्धातिशुक्लवस्त्रविनिर्मितदेदीप्यमानमुखवत्रिकः । विरजा निर्मलान्तः करणः, इसके अतिरिक्त जिनपति के शिष्य लवद्वारा रचित सनत्कुमारचरित्र में सनत्कुमार के तीसरे पूर्वभववर्ती विक्रमयश नामक राजा का वर्णन करते हुए कहा है सनत्कुमार अपने तृतीय पूर्वभव में विक्रमयश नामक राजा था । वह परिषद में धर्मकथा सुनने के लिए जिस प्रकार बैठा था उसका वर्णन करते हुए कहते हैं....'मुखेन्द.' इत्यादि । इसकी व्याख्या इस प्रकार है:---- जिसके मुखचन्द्र पर मुखवस्त्रिका सुशोभित थी अर्थात् मुख के ऊपर बँधी हई, सफेद वस्त्र की बनी हुई मुखवस्त्रिका से जिसका मुख शोभायमान हो रहा था, जिसका अन्तःकरण निर्मल था और जो दिनों के समूह से सेवित था ऐसा विक्रमयश એ સિવાય જિનપતિના શિષ્ય વિદ્વારા રચિત સનકુમારચરિત્રમાં સનસ્કુમારના ત્રીજા પૂર્વભવવત્ત “વિક્રમશ' નામના રાજાનું વર્ણન કરતા થકા કહે છે કે સનકુમાર પિતાના ત્રીજા પૂર્વભવમાં વિક્રમથશ નામના રાજ હતા, તે પરિષદમાં (સભામાં) ધર્મકથા સાંભળવા માટે જે પ્રમાણે બેઠા હતા તેનું વર્ણન કરતા થકા કહે -'मुखेन्दु. त्यादि. शनी व्यायामा प्रमाणे - જેના સુખચન્દ્ર પર મુખવાચિકા સુમિત હતી, અર્થાત મુખ ઉપર બાંધેલી સફેદ વસ્ત્રની બનેલી મુખવઝિકાથી જેનું મુખ ભાયમાન થઈ રહ્યું હતું, જેનું અન્તાકરણ નિમલ હતું, અને જે દ્વિજોના સમૂહથી સેવિત હતા, એવા વિક્રમ યશ નામના રાજા -

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