Book Title: Acharanga Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 861
________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य० १३.७ सु. ३ वायुकायोपभोगः जानाति = अनुमोदयति । तद् = वायुकायसमारम्भणं तस्य वायुकायसमारम्भणंकुर्वतः कारयितुः अनुमोदयितुश्च अहिताय भवति । तथा-तत् तस्य अबोधये= सम्यक्त्वालाभाय भवति ॥ सू० ३ ॥ येन तु तीर्थङ्करादिसमीपे वायफायस्वरूपं परिज्ञातं स एवं विभावयतीत्याह-' से तं. ' इत्यादि । ६९५. मूलम्--- सेतं संयुज्झमाणे आयाणीयं समुद्वाय सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणां वा अंतिए, इहमेगेसि णायं भवइ एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु गए । इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूत्रख्वेद्दि सत्येहिं वाउकम्मसमारंभेणं, वास समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ ॥ सू० ४ ॥ ? करते हैं । वायुकाय का यह आरंभ करने वाले कराने वाले और उसकी अनुमोदना करने वाले को अहितकर होता है तथा अबोधिजनक होता है | सू० ३ ॥ तीर्थंकर आदि के निकट जिसने वायुकाय का स्वरूप समझ लिया है, वह इस प्रकार विचार करता है:-' से तं.' इत्यादि । मूलार्थ - - भगवान् से या उनके अनगारों से सुनकर - समझकर जिसने संयम धारण किया है वह जानता है कि यह वायुकाय का समारंभ हो ग्रंथ है, यहाँ मोह है, यही मार है, यही नरक है। इसी में लोग गृद्ध हो रहे है, क्यों कि नाना प्रकार के शस्त्रों से वायुकाय के समारंभद्वारा वायुश का आरंभ करते हुए अन्य अनेक प्रकार के प्राणियों की हिंसा करते हैं । सू० ४ ॥ આરંભ, આરંભ કરવાવાળાને, કરાવનારને અને તેની અનુમેદના આપવાવાળાને अडितार थाय छे, तथा भोधिन्न थाय छे ॥ सू० ३ ॥ તીર્થંકર આદિના સમીપમાં જેણે વાયુકાયનું સ્વરૂપ સમજી લીધું છે, તે આ प्रमाणे विचार करे छे:' से तं.' इत्यादि. મૂલા ભગવાન પાસેથી અથવા તેમના અણુગારે પાસેથી સાંભળી-સમજી ને જેણે સયમ ધારણ કર્યું છે તે જાણે છે કેઃ- વાયુકાયના સમારંભજ ગ્રંથ છે. એજ મેાહ છે, એજ માર છે. એજ નરક છે, એમાં લેાકેા શુદ્ધ થઈ રહ્યા છે, કેમકે નાના પ્રકારના શસ્ત્રાથી વાયુકાયના સમારંભદ્વારા વાયુશસ્ત્રના આરંભ કરતા થકા અન્ય અનેક પ્રકારનાં પ્રાણીએની હિંસા કરે છે. સૂ॰ ૪

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