Book Title: Acharanga Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 873
________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य० १ उ. ७सू. ६ मुखवस्त्रिका विचारः ..७०५ समारम्भः ग्रन्थमोहमारनरकरूपस्तस्मादहितोऽयमिति मत्वा वायुकायविराधनया शान्तिमार्गावलम्बिनः संयमिनः प्राणान् धारयितुमपि नावकाङ्क्षन्तीत्यत्रैवोदेशे समुपदिशता भगवता भाषणयतनारूपं मुखवस्त्रिकावन्धनमिति सूचितम् । उक्तञ्च समुत्थानसूत्र- “........ तओ पच्छा गोयमा ! सलिंगे मुहपति मुहेण सद्धिं बंधे ॥ १ ॥ arat: णं भंते! पिमाणा १ गोयमा! मुहष्पमाणा मुहपत्ती | मुहपत्ती णं भंते ! कस्स वत्स कडे ? गोयमा ! एगस्सवि सेयवत्यस्स णं अपुडलाए मुहपत्ति करेह ॥ २ ॥ कस मुहपत्ती अन पुढलाई ? गोयमा ! अनुकम्म दहण हूं || मुद्दती णं भंते १, कहं बंधे ?, गोयमा ! एगकन्नेण दुच्चन्नप्पमाणेण दोरेण सद्धि मुहे बंधे | मुहपीएणं भंते 1 के अहे ?, गोयमा ? जण्णं मुहअंते सइ वट्टति से तेणं मुहपत्ती । कस्सद्वंभंते ! मुहपत्ति मुहेणसद्धिं बंधे ?, गोयमा ! सलिंगवाउजीवरक्खटुं ॥ ३ ॥ जणं भंते ! मुहपत्ती वाउजीवरक्खणट्ठाए तो कि सुहुमवाउका यजीवरक्खणडाए वा वायरवाकयजीवरक्खणट्टाए वा ? गोयमा ! गोति सुहुमबाउकायजीवरक्खणट्टाए वायरवाकयजीवरक्खणट्टाए । नो-ति अविसेस, एवं ते सव्वेवि अरिहंता पवच्चति ॥ ४ ॥ " इति । यह चायुकाय का समारंभ ग्रन्थ है, मोह है, मार है, नरक है और इस कारण महितकारी है, अत एव शान्ति - मोक्षमार्ग का अवलम्बन करने वाले संयमी वायुकाय की विराधना करके अपने प्राणों की भी इच्छा नहीं करते । इसी उद्देश में भगवान् ने उपदेश देते हुए भाषा यतनारूप मुखवस्त्रिका का बाँधना सूचित किया है । समुत्थान सूत्र में कहा भी है: सभारंभ ग्रंथ छे, भोड छे, भार छे, नरह छे, अने ते शर भडितारी है. भेटला માટે શાંતિ-મક્ષ માર્ગનું અવલંબન કરવાવાળા સંયમી વાયુકાયની વિરાધના કરીને પાતાના પ્રાણની પણ ઈચ્છા કરતા નથી. આ ઉદ્દેશમાં ભગવાને ઉપદેશ આપતા થકા ભાષા ચતનારૂપ મુખસ્તિકા બાંધવાની સૂચના કરી છે. સમુત્થાનસૂત્રમાં કહ્યું પણ છે. प्र. आ.-८९

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