Book Title: Acharanga Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 850
________________ ६८६ आचारात्सूत्रे 7 अथ सर्वथा वायुकायसमारम्भपरित्यागिनोऽनगारान् तथा वायुकाय समारम्भमवृत्तान् द्रव्यलिङ्गिनथ विविन्य प्रतिबोधयितुमाह--' लज्जमाणा.' इत्यादि । अथ शस्त्रद्वारम् - मूलम् -- लज्जमाणा पुढो पास । अणगारा मो-त्ति एगे पत्रयमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहि वाउकम्मसमारंभेणं, वाउसत्थं समारंभमाणा अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति ॥ सु० २ ॥ छाया लज्जमानाः पृथक् पश्य । अनगाराः स्म इति एके मवदमानाः, यदिमं विरूपरूपैः शस्त्रैः वायुकायसमारम्भेण, वायुकायशखं समारभमाणा अन्यान् अनेकरूपान् प्राणान् विहिंसन्ति ॥ ०२ ॥ वायुकाय के समारंभ का सर्वथा त्याग करने वाले मुनियों को और वायुकाय के समारम्भ में प्रवृत्ति करने वाले द्रव्यलिंगियों को अलग-अलग बतलाने के लिए कहते हैं:'लज्जमागा.' इत्यादि । शत्रद्वार मूलार्थ - - वायुकाय का समारम्भ करने में संकोच करने वाले अनगारों को अलग देखो, और कोई-कोई 'हम अनगार हैं' ऐसा कहते हुए नाना प्रकार के शस्त्रों से वायुकाय का समारम्भ करके, वायुकाय का समारम्भ करते हुए अन्य अनेक प्रकार के प्राणियों की हिंसा करते हैं उनको अलग देखो || सू० २ ॥ વાયુકાયના સમારંભના સર્વથા ત્યાગ કરવાવાળા મુનિઓને અને વાયુકાયના સમારંભમાં પ્રવૃત્તિ કરવાવાળા દ્રવ્યલિંગિઓને જૂદા જૂદા અતાવવા માટે કહે છેઃ— ' लज्जमाणा' त्याहि. शस्त्रद्वार મૂલા વાયુકાયના સમારભમાં સ``ચ કરવાવાળા અણુગારાને જૂદા જાણે, અને કોઈ-કઈ અમે અણુગાર છીએ? એવું કહેનારા અને નાના પ્રકારના શસ્ત્રોથી વાયુકાયના સમારંભ કરીને, વાયુકાયને સમારંભ કરતા થકા બીજા અનેક પ્રકારના आयिोनी डिसा ४रे छे. तेने भाष्य ब्लूहा-हा भो ॥ सू० २ ॥

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