Book Title: Acharang Sutram Author(s): Devchandrasagarsuri Publisher: Vardhaman Jain Agam Tirth View full book textPage 7
________________ तो तेनो प्राण छे. प्रभुए स्वमुखे जे प्रकाश्यु. ते तेमनो प्राण थयो. गणधरोए तेने शब्दस्थ कर्यु, ते तेमनु स्मृतिचिह्न थयुं अने गणधरोपर वासक्षेप करीने से द्वादशांगी पर पोताना हस्ताक्षर कर्या । - - - जरा विचारीये... प्रभुनी प्रतिमा, प्रभुनु नाम, अत्यंत पूजनीय, तो पछी आगम ? ते तो सतत वंदनीय अने पूजनीय केम के तेमां प्रभुना प्राण, स्मृति अने हस्ताक्षर नो संगम छे । संगम स्थळ विश्वमा पवित्र छे, अने पवित्रतां नी तमाम हद वटावी ने जिनागम पवित्रतम् छे. अर्थात् के, प्रभुए आपणे हस्ताक्षर आप्यां । त्रीजुं जिंदगी जीववानी कळा :- आर्ट ओफ लाईफ, जेवी रविशंकर महाराजे बताडेली कळा आजनी छे परन्तु वीरप्रभुए तेने आजथी पच्चीशसो अडसठ वर्ष पहेला ज बतावी हती । जिनागमो मां निशीथादि छेद सूत्रो, आचारांगादि अंग सूत्रो विगेरे मां प्रभुए क्यांक ने क्यांक तमारा जीवनने वधु फ्रेशनेश करवानां उपायो बताव्यां ज छ । साधुने केम रहेदूं ? क्यां रहेQ ? तेनी दिनचर्या... तमामने जिनागमोमां समावी लेवामां आवी छे. ज्यारे श्रावको माटे उपासकदशांग आदि आगमोमां जीवनने केम जीवी ने आत्मोन्नती करवी ते पण बताव्युं छे. आपणे मोरल तरीके जोइये तो जिनागम ए आपणने प्रभु द्वारा मळेली श्रेष्ठतम भेट छे. जेमां प्रभुए आपणा सहूनो सतत ख्याल राख्यो छे. परमात्मा बाद गुरूमां ने समजीये । 'तित्थयरो समो सूरि.. . आचार्यो छे जिन धरमना दक्ष व्यापारी शूरा ।' शास्त्रकार महर्षिओए एम ने एम सूरी भगवंतोने अलग अलग उपमा नहिं आपी होय । आचार्य भगवंतो सतत साधु तथा श्रावको ना हितनुं ध्यान राखता होय छे. शासननी जवाबदारी उपरान्त साधुओनां योग-क्षेममां तेमनो पण महत्वनो फाळो होय छे. काळना ओछाया हेठळ ... साधुओने आगमनां रहस्य समजवामां तकलीफ थवा मांडी, श्री आचारांग सूत्रम् (००६)Page Navigation
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