Book Title: Acharang Sutram Author(s): Devchandrasagarsuri Publisher: Vardhaman Jain Agam Tirth View full book textPage 5
________________ अविरत उत्साह प्रवर्तमान छे. अने भविष्यमा ४५ आगमो प्रताकारे संपादन करवा माटेनी मारी भावना पण छे. सौ प्रथम आ चातुर्मास दरम्यान पू. गच्छाधिपति आचार्यदेवश्री दोलतसागरसूरीश्वरजी महाराजानी भावना थई के आ, संवत २०६८ ना श्री वर्धमान जैन आगम तीर्थमां थयेल चातुर्मासनी यादगिरी निमित्त आचाराङ्ग सूत्रना पहेला अध्यननी टीका सहित पुस्तकाकारे ग्रन्थ छपावीने बहार पाडीए. तेमनी भावना मुजब आचारांग सूत्रनुं पहेलुं अध्ययन छपावी रह्यो छु. आगळ जता जो चतुर्विध संघनी भावना थशे तो आगळ प्रयत्न करवानुं विचारी. • आ पुस्तक छपाववामां आर्थिक सहायक पूना निवासी भाग्यशालीए लीधेल छे तथा आ पुस्तकमां प्रुफ शुद्धि करवामां मददगार रह्या छे. वैयावच्च प्रेमी बालमुनिश्री विमलसागरजी म.सा. तेमने पण आ अवसरे अचूक याद करूं छ. अंतमां चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीर देवे प्रकाशेल जिनवाणीनो प्रभाव पांचमा आराना छेडा सुधी रहेशे. ए ज्वलंत जिनवाणीनो प्रकाश आपणा आत्माने अजवालनारो बने ते माटे योग्यता अने अधिकार मुजब जिनवाणीनी उपासना - भक्तिमां भावोल्लास पूर्वक रस लइ रह्यो छं. ते टकी रहे अने सौ श्रुत आराधनामां उजमाल बनीए एज मारा अंतरनी शुभ भावना छे वीर सं०२५३९ वि.सं. २०६८ कार्तिक सुद १ बुधवार श्री वर्धमान जैन आगम तीर्थ पूना - सातारा रोड, कात्रज पूना ४११ ०४६ मो. ०७८७५८३७७९१ श्री आचारांग सूत्रम् (004) पू. स्व. गच्छाधिपति आचार्यदेवश्री देवन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराजानो चरण सेवक आ.देवचन्द्रसागर सूरिPage Navigation
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