Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 8
________________ [7] प्रस्तुत आगम पाठकों को उपलब्ध कराया जा रहा है, संघ एवं पाठक वर्ग आपके इस सहयोग के लिए आभारी है। . आदरणीय शाह साहब तत्त्वज्ञ एवं आगमों के अच्छे ज्ञाता हैं। आप का अधिकांश समय धर्म साधना आराधना में बीतता है। प्रसन्नता एवं गर्व तो इस बात का है कि आप स्वयं तो आगमों का पठन-पाठन करते ही हैं, पर आपके सम्पर्क में आने वाले चतुर्विध संघ के सदस्यों को भी आगम की वाचनादि देकर जिनशासन की खुब प्रभावना करते हैं। आज के इस हीयमान युग में आप जैसे तत्त्वज्ञ श्रावक रत्न का मिलना जिनशासन के लिए गौरव की बात है। आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलाबहन शाह एवं पुत्र रत्न मयंकभाई शाह एवं श्रेयांसभाई शाह भी आपके पद चिन्हों पर चलने वाले हैं। आप सभी को आगमों एवं थोकड़ों का गहन अभ्यास है। आपके धार्मिक जीवन को देख कर प्रमोद होता है। आप चिरायु हों एवं शासन की प्रभावना करते रहें, इसी शुभ भावना के साथ! ___ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध की यह चतुर्थ आवृत्ति प्रकाशित की जा रही है। पूर्व प्रकाशित तृतीय आवृत्ति को १. श्रीमान् किशोरजी सराफ दुर्ग २. श्री रोशनजी सोनी दुर्ग ३. श्री सुनिलकुमारजी टाटिया रायपुर ४. श्री प्रकाशचन्दजी सा. डागा रायपुर ने पूज्य पं. र. श्री लक्ष्मीमुनि जी म. सा. को पूज्य श्री जी की अनुकूलतानुसार उन्हें सुनाया। पूज्य श्री जी ने जहाँ भी आवश्यक समझा, उचित संशोधन हेतु संकेत किया, तदनुसार यह चतुर्थ संशोधित आवृत्ति भी आदरणीय शाह साहब के अर्थ सहयोग से ही प्रकाशित की जा रही है। पूज्य श्री जी सुनाने वाले सभी श्रावकों एवं आदरणीय शाह साहब का संघ अत्यन्त आभारी है। आए दिन कागज एवं मुद्रण सामग्री के मूल्यों में निरंतर वृद्धि हो रही है। इस आवृत्ति में जो कागज काम में लिया गया वह उत्तम किस्म का मेपलिथो है। बाईडिंग पक्की तथा सेक्शन है। बावजूद इसके आदरणीय शाह परिवार के आर्थिक सहयोग के कारण इसका मूल्य मात्र २५) ही रखा गया है, जो अन्यत्र से प्रकाशित आगमों से बहुत अल्प है। सुज्ञ पाठक बंधु संघ के इस नूतन संशोधित आवृत्ति का अधिक से अधिक लाभ उठावें। इसी शुभ भावना के साथ! व्यावर (राज.) संघ सेवक दिनांकः २५-११-२००६ नेमीचन्द बांठिया श्री अ. भा. सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ, जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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