Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 6
________________ [5] •••rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr भासा-अभासा-चरण-करण जायामायावित्तीओ आघविजंति, से समासओ पंचविहे पण्णत्ते तं जहा - णाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे।" - प्रश्न - वह आचारांग क्या है ? ... उत्तर - आचारांग में श्रमण निर्ग्रन्थों का १. आचार २. गोचर ३. विनय ४. वैनयिक ५. शिक्षा ६. भाषा ७. अभाषा ८. चरण ९. करण १०. यात्रा-मात्रा इत्यादि वृतियों का निरूपण किया गया है। वह संक्षेप में पांच प्रकार का है यथा - १. ज्ञानाचार २. दर्शनाचार ३. चारित्राचार ४. तपाचार और ५. वीर्याचार। - यानी तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा प्ररूपित और पूर्व महापुरुषों द्वारा आचरित ज्ञानादि की आराधना विधि को आचार कहते हैं तथा उसके प्रतिपादक ग्रंथ को आचाराङ्ग सूत्र कहते हैं। इसमें मोक्षप्रद तप में श्रम करने वाले, समस्त जीवों के प्रति वैर का शमन करने वाले, इष्ट अनिष्ट में समभाव रखने वाले, निर्ग्रन्थों के आभ्यन्तर और बाह्य विषय कषाय कंचन कामिनी आदि की परिग्रह रूपी गांठ से निर्मुक्त संतों के आचरण करने योग्य विधि-निषेध का वर्णन है। - इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं और पच्चीस अध्ययन हैं। प्रथम श्रुत स्कन्ध के नौ अध्ययन ' हैं - १. शस्त्र परिज्ञा २. लोक विजय ३. शीतोष्णीय ४. सम्यक्त्व ५. लोकसार ६. धूत ७. महापरिज्ञा ८. विमोह और ९. उपधानश्रुत। अभी ७ वाँ महापरिज्ञा अध्ययन व्यवच्छिन्न हो चुका है। दूसरे श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन हैं - १. पिण्डैषणा २. शय्याएषणा ३. इर्या ४. भाषा ५. वस्त्रैषणा.६. पात्रेषणा ७. अवग्रह प्रतिमा ८. स्थान नैषधिका ९. उच्चार प्रश्रवण १०. शब्द ११. रूप १२. परक्रिया १३. अन्योन्य क्रिया १४. भावना और १५. विमुक्ति। ये सब २५ अध्ययन हुए। दूसरे श्रुतस्कन्ध के पहले से ७ वाँ सात अध्ययनों को पहली चूला ८ वें से १४ वाँ इन सात अध्ययनों को दसरी चला. १५ वें अध्ययन को तीसरी चूला और १६ वें अध्ययन को चौथी चूला कहा है। यद्यपि द्वितीय श्रुतस्कन्ध पांच चूलिकासों में विभक्त माना गया है। इनमें से चार चूला आचाराङ्ग में है और पांचवीं चूला आचारांग से पृथक कर दी गई है जो निशीथ सूत्र के नाम से स्वतंत्र आगम मान लिया गया है। जिसमें आचारांग में वर्णित आचार में दोष लगने पर इसकी विशुद्धि के लिए प्रायश्चित्त का विधान है। ___दोनों श्रुतस्कन्ध के ८५ उद्देशक हैं। पहले श्रुतस्कंध के ५१ है - यथा शस्त्र परिज्ञा के ७, लोक विजय के ६, शीतोष्णीय के ४, सम्यक्त्व के ४, लोकसार के ६, धूत के ५, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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